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सम्यक् आचार
स्वाध्याय सुद्ध चिंतस्य, मन वचन काय रंधनं । त्रिलोकं तिअर्थ सुद्धं, अस्थिर सास्वतं धुर्व ॥३७०॥ स्वाध्याय से मन विकृतियों का, शीघ्र होता नाश है । मन, वचन, काय त्रियोग बनता दास, रहता पास है। इस आत्मा में निहित जो, जयरत्न-राशि महान है । स्वाध्याय उस निधि से, करा देता अमर पहिचान है ।।
स्वाध्याय करने से मनुष्य का चित्त पूर्णरूपेण शुद्ध हो जाता है; मन वचन काय तीनों योगों पर उसका अधिकार हो जाता है और आत्मा में जो रत्नत्रय का निधान छिपा हुआ है, उससे उसकी सदा के लिये ध्रुव और अमर पहिचान हो जाती है।
संयम
मंजमं मंजमं कृत्वा, मंजमं द्विविधं भवेत् । इन्द्रियानं मनोनाथा, रष्यनं त्रय थावरं ॥३७१॥ संयम क्या ? मननिग्रह है, संयम दो प्रकार सुजान है । इन्द्रिय प्रथम है, प्राणि संयम, द्वितीय भेद महान है । मन सहित पंचेन्द्रिय निरोधन, प्रथम संयम सार है । त्रस स्थावरों का त्राण, यह संयम द्वितिय सुख द्वार है ।।
अपने मनको वश में रखना इसी का नाम संयम है। संयम दो प्रकार का होता है (१) इन्द्रिय संयम (२) प्राणी संयम । पंचेन्द्रिय सहित मनका निरोध करना इसे इन्द्रिय संयम और त्रस और स्थावर प्राणियों की रक्षा करना इसे प्राणी संयम कहते हैं।