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सम्यक् आचार ................. [१४७
पात्र दानं च चत्वारि, न्यान आहार भेषजं । अभयं च भयं नास्ति, दान पात्र सदा बुधै ॥२७०॥ यह दान कर देता है, मानव के भयों का नाश है । करती है विद्वत् राशि इससे. दान में विश्वास है ।। है ज्ञानदान प्रथम, द्वितिय आहारदान महान है । औषध तृतीय सुदान, चौथा दान अभय सुजान है।
पात्रों को जो दान दिया जाता है वह चार प्रकार का होता है (१) ज्ञानदान (२) आहारदान (३) औषधिदान (४) अभयदान | ये दान मनुष्यों को भय से रहित बना देते हैं, अत: जो विद्वान होते हैं, वे सदा ही दान देने की भावना किया करते हैं ।
न्यान दानं च न्यानं च, आहार दान आहार यं । अवाधं भेषजस्चैव, अभयं अभय दान यं ॥२७१॥ रे ! ज्ञानदान प्रदान करता, ज्ञानियों को ज्ञान है । आहार से आहारमय, रहता सदैव निधान है। भैषज्यदानी नर न रहता, हीन, क्षीण, मलीन है ।
रहता अभयदानी सदा ही. रे ! भयों से हीन है ॥ ज्ञानदान देने से उस भव में अनतज्ञान की प्रगति होती है; आहारदान देने से भवन अन्न और खाद्यपदाथ से परिपूर्ण रहता है; औषधिदान देने से तन निरोग और स्वस्थ बना रहता है तथा अभयदान देने से दानी के समस्त प्रकार के भय निमूल हो जाते हैं। इतना ही नहीं, परभव में निर्भय योनियों को प्राप्त करता है।