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सम्यक् आचार.....
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द्यून क्रीड़ा जूआ अमुद्ध भावस्य. जोइतं अनृतं श्रुतं । परिणय आरति मंजुक्तं, जूआ नरय भाजनं ॥१०८॥ यह जुआ करता सृजन, अंतर में मलिन संसार है । यह क्या ? नहीं कुछ, असत् वाणी का विशद भंडार है। करता है आते ध्यान का, यह हृदतलों में परिणमन । इसके खिलाड़ी, नर्क में करते गमन, करते गमन ।।
जुआ हृदय में मलिन भावों का संमार उत्पन्न करने वाला होता है। मिथ्या और कटु वचनां का तो यह निवास ही मनभा जाना चाहिये । इम व्यसन में फंसने से परिणामों में आनध्यान का प्राचुर्य हो जाता है, इससे यह जुा मानवों को निश्चय से नर्क में पतन करनेवाला है।
माँस-भक्षण
मामं रोदस्य ध्यानस्य, मंगर्छन जत्र तिम्टने । जलं कंद मूलस्य माकं मंमूर्छनम्तथा ॥१०९॥ सम्मुर्छन म जन्तुओं की, वस्तु जो आगार हैं । वे हैं सभी ही मांस भव्यो, रौद्र की वे द्वार हैं । अनछना जल पीना व करना कंदमूलों का अशन ।
यह कुछ नहीं, बस जन्तुओं से, पोषणा है एक तन ॥ मांस किसे कहते हैं ? उन सारी वस्तुओं को जिनमें सम्मूछन जन्तुओं की सृष्टि दिखाई पड़े। मांस खाना रौद्र ध्यान का कारण होता है अर्थात् मांस खाने से हृदय में रौद्र भाव उत्पन्न हो जाते हैं अनछना जल, कंदमूल, पत्तेवाली शाक भाजी, ये सब मांस के ही अन्तर्गत आने वाली वस्तुए हैं।