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सम्यक् आचार.
दर्सन तत्व सार्धं च, ति अर्थ सुद्ध दिस्टतं । मय मूर्ति संपूरनं, स्वात्मदर्सन चिंतन ॥२३६॥ सम्यक्त्व क्या ? तत्वार्थ का रे ! दृढ़, अचल श्रद्धान है । संसार सागर तारने को, जो जहाज समान है ।। जो ज्ञान की प्रतिमूर्ति हैं, जो पूर्ण अपने आप हैं । करते हैं वे बस स्वात्म-दर्शन, स्वात्म का ही जाप हैं ।
सम्यग्दर्शन क्या है ? तत्वार्थ के श्रद्धान का नाम हो सम्यग्दर्शन है। यह सम्यग्दर्शन, यदि शुद्ध दृष्टि से देखा जाय, तो संसार के प्राणियों को तारने के लिये जहाज के समान होता है। जो पुरुष ज्ञान की प्रतिमूर्ति होते हैं, या जो अपने आप संपूर्ण होते हैं, वे इस सम्यग्दर्शन का ही चिन्तवन करते हैं या वे अपनी शुद्धात्मा का ही ध्यान धरते हैं।
दर्मनं मप्त तत्वानं, द्रव्य काय पदार्थकं । जीव द्रव्यं च मुद्ध च, ना उद्धं दरमा ॥२३७॥
पट द्रव्य. सातों तत्व का. करता जो कि श्रद्धान है । व्यवहार सम्यग्दृष्टि कहलाता, वह नर मतिमान है। जिस जीव के श्रद्धान का, बस लक्ष्य आतमराम है । द्रव्यार्थिक नय दृष्टि से वह जीव समकित-धाम है ।।
जो पुरुप सातों तत्व, छः द्रव्य, पांच अस्तिकाय और नौ पदार्थों का श्रद्धान करता है, वह व्यवहार नय से सम्यग्दर्शन का पालन करता है और जो पुरुष शुद्ध जीव द्रव्य का श्रद्धान करता है वह द्रव्यार्थिक नय से सम्यग्दर्शन का साधन करता है ।