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.... सम्यक् आचार
जस्य हृदयं सार्द्ध व्रत तप क्रिया संजुतं । सुद्धं तत्वं च आराध्य, मुक्ति गामी न संशयः ॥१९॥ सम्यक्त्व रूपी संपदा, जिस हृदय के आधीन है । व्रत, तप, क्रियाओं में समझ लो, वह सदा तल्लीन है॥ शुद्धात्म की आराधना, रे ! वह सुधा की बिन्दु है ।
पीकर जिसे नर प्राप्त कर जाता, अमर-सुख-सिंधु है॥ जो पुरुष सम्यक्त्व से युक्त रहता है, वह व्रतधारी नहीं रहते हुए भी, व्रत, तप, क्रिया आदि सब दैनिक कर्म करने वालों के समान ही रहता है ! शुद्ध तत्व की आराधना या शुद्धात्म तत्व में प्रतीति वास्तव में एक ऐसी वस्तु है कि उसके आराधक को मुक्ति प्राप्त करते देर ही नहीं लगती।