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प्रवचनसार:
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अन्तरेण वस्तु परिणामोऽपि न सत्तामालम्बते । स्वाश्रयभूतस्य वस्तुनोभावे निराश्रयस्व परिणामस्य शून्यत्वप्रसङ्गात् । वस्तु पुनरूर्ध्व तासामान्यलक्षणरणे द्रव्ये सहभाविविशेषलक्षणेषु गुणेषु क्रमभाविविशेषलक्षणेषु पर्यायेषु व्यवस्थित मुत्पादव्ययधीव्यमयास्तित्वेन निर्वर्तितं निर्वृत्तिमच्च, ग्रतः परिणामस्वभावमेव ||१०||
अस्तित्वनिर्वृत्तः प्र० ए० । निरुक्ति अर्थते निश्चीयते इति अर्थः । समास- द्विव्यं च गुणं च पर्यायश्चेति द्रव्यगुणपर्ययाः तेषु तिष्ठति इति द्रव्यगुणपर्ययस्थः, अस्तित्वेन निर्वृत्तः इति अस्तित्वनिर्वृत्तः ।। १० ।
लिक ऊर्ध्वप्रवाहरूप सामान्य द्रव्य है । ( १५ ) त्रैकालिक साथ साथ रहने वाले विशेष गुण हैं । (१६) क्रमशः होने वाले विशेष पर्यायें हैं । ( १७ ) उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्त पदार्थ सत् है । (१६) अभेदरूप द्रव्य व भेदरूप गुरण ध्रौव्यांशरूप हैं । (१६) प्रभेद पर्याय व भेदरूप पर्याय उत्पादव्ययरूप हैं । (२०) ग्रात्माको एकान्ततः कूटस्थ नित्य ध्रुव माननेपर ग्रात्माको मोक्ष मार्ग की आवश्यकता ही क्या ? (२१) ग्रात्माको क्षणक्षयी माननेपर ग्रात्माको मोक्षमार्ग की आवश्यकता ही क्या ? (२२) आत्मा उत्पादव्ययघ्रीव्ययुक्त है, अतः प्रज्ञान परिणाम से हट कर ज्ञानपरिणाममें प्राकर आत्मीय ग्रानन्द पानेके लिये मोक्षमार्गकी व मोक्षमार्ग में प्रगतिकी आवश्यकता होती है ।
सिद्धान्त - ( १ ) वस्तु उत्पादव्ययधीव्ययुक्त है । ( २ ) पदार्थ परिणामस्वभाव होनेसे निरन्तर परिणमता रहता है । (३) प्रत्येक वस्तु अनाद्यनन्त है ।
दृष्टि - ( १ ) उत्पादव्ययसापेक्ष अशुद्ध द्रव्यार्थिक नय [ २५ ] । ( २ ) द्रव्यत्वदृष्टि [२०६] । ( ३ ) ऊर्ध्व सामान्यनय [ १६ ] |
प्रयोग - अशुभ परिणामसे हटकर शुभपरिणामसे गुजरकर द्रव्य गुणपर्यायके भेद से परे द्रव्यगुणपर्याय समवस्थित अपने अंतस्तत्त्वको अभेद अनुभवनेके लिये परमविश्राम करना ||१०|| | अब चारित्र परिणाम के साथ संपर्क और संभव वाले शुद्ध और शुभ परिणामका ग्रहण तथा त्यागके लिये उनका फल विचारते हैं- [धर्मेण परिणतात्मा ] धर्मसे परिणत स्वरूप [आत्मा]] आत्मा [यदि ] यदि [ शुद्धसंप्रयोगयुतः ] शुद्ध उपयोग में युक्त है तो [निर्वाणसुखं] मोक्षसुखको [ प्राप्नोति ] प्राप्त करता है [ शुभोपयुक्तः वा ] और शुभोपयोग वाला है तो [ स्वर्गसुखं] स्वर्गके सुखको प्राप्त करता है ।
तात्पर्य - धर्मसे परिणत आत्मा साक्षात् या परम्परया निर्वाणसुखको प्राप्त होता है ।
टीकार्थ - जब यह आत्मा धर्मपरिणत स्वभाव वाला होता हुआ शुद्धोपयोगपरिणतिको धारण करता हैं तब विरोधी शक्तिसे रहितपना होनेके कारण अपना कार्य करनेके लिये समर्थ चारित्र वाला होनेसे साक्षात् मोक्षको प्राप्त करता है, परन्तु जब वह धर्मपरिणत स्वभाव वाला