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सहजानन्दशास्त्रमालायां अथ परिणाम वस्तुस्वभावेन निश्चिनोति
णत्थि विणा परिणाम अत्थो अत्थं विणेह परिणामो। दव्वगुणपजयत्थो अत्थो अत्थित्तणिव्वत्तो ॥ १० ॥ परिणमन बिना वस्तु न, परिणति भो है नहीं बिना वस्तू ।
द्रव्यगुरणपर्ययस्थित, वस्तू अस्तित्वसे निर्मित ॥१०॥ नास्ति विना परिणाममर्थोऽथ विनेह परिणामः । द्रव्यगुणपर्ययस्थोऽर्थोऽस्तित्वनिर्वृत्तः ।। १० ।।
न खलु परिणाममन्तरेण वस्तु सत्तामालम्बते । वस्तुनो द्रव्यादिभिः परिणामात् पृथगुपलम्भाभावान्निःपरिणामस्य खरशृङ्गकल्पत्वाद् दृश्यमानगोरसादिपरिणामविरोधाच्च । ____ नामसंज्ञ-ण, विणा, परिणाम, अत्थ, इह, दव्वगुणपज्जयत्थ, अत्थ, अत्थित्तणिवत्त । धातुसंज्ञ-अस सत्तायां प्रथमगणी । प्रातिपदिकन, विना, परिणाम, अर्थ, इह, द्रव्यगुणपर्ययस्थ, अर्थ, अस्तित्वनिवृत्त । मुलधातु- अस भुवि अदादि । उभयपदविवरण-ण न विणा विना इह-अव्यय । अत्थि अस्ति-वर्तमान लट् अन्य पुरुष एकवचन क्रिया । परिणाम-द्वितीया एकवचन । अत्थो अर्थ:-प्रथमा एक० । अत्थं अर्थद्वितीया एक०। परिणामो परिणाम: दल्वगुणपज्जयत्थो द्रव्यगुणपर्ययस्थः अत्थो अर्थः अत्थित्तणिब्बत्तो
प्रसंगविवरण ---अनन्तरपूर्व गाथामें बताया गया था कि जीव जब शुभ, अशभ व शुद्ध भावसे परिणमता है तब वह शुभ, अशुभ व शुद्ध है। अब इस गाथामें उसीकी पुष्टिके लिये सामान्य नियम द्वारा कहा गया है कि परिणाम तो (परिणमन तो) वस्तुके स्वभावसे होता ही रहता है।
तथ्यप्रकाश ---(१) पर्याय न हो तो वस्तु ही कुछ नहीं है । (२) ध्रुव वस्तु न हो तो पर्याय कैसे व कहाँ हो ? (३) पदार्थको अभेददृष्टि से ध्र व देखनेपर त्रैकालिक अखण्ड द्रव्य कहा जाता है । (४) पदार्थको भेददृष्टि रखकर ध्र व अंश देखनेपर गुण विदित होते हैं । (५) पदार्थका अभेद परिणमन देखनेपर एक समयमें एक अखंड प्रवक्तव्य पर्याय विदित होता है । ( ६ ) पदार्थका भेददृष्टि से परिणमन देखनेपर एक ही समय में अनेक पर्याय (प्रत्येक गुणके पर्याय) विदित होते हैं । (७) द्रव्य गुण पर्यायमें स्थित अर्थ सत् है । (८) वस्तुके द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव वस्तुसे भिन्न उपलब्ध नहीं हैं । (६) शुद्धात्मोपलब्धि रूप शुद्ध परिणमनके बिना शुद्ध जीवपदार्थ नहीं है । (१०) शुद्ध जीवपदार्थके बिना शुद्धात्मोपलब्धिरूप शुद्ध परिणमन नहीं है । (११) यह परमात्मपदार्थ प्रात्मस्वरूप द्रव्य व सहज ज्ञानादि गुण व केवलज्ञान आदि पर्यायोंमें अवस्थित सत् है । (१२) वस्तु द्रव्यगुणपर्यायमय है। (१३) वस्तुको अभेद, अन्वय, व्यतिरेक, प्रदेश आदि अनेक दृष्टियोंसे परखनेपर अखंड द्रव्य, अखण्ड पर्याय, अनेक गुण व अनेक पर्यायें ज्ञात होती है, पर ये भिन्न सत् नहीं, इनके प्रदेश भिन्न नहीं । (१४) त्रैका