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मन की शा
प्रवचनसारः
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मति तदा शुद्धारागपरिणतस्फटिकवलरिणामस्वभावः सन् शुद्धो भवतीति सिद्ध जीवस्य शुभाशुभशुद्धत्वम् ।। ६ ।
सुद्धेण शुद्धेन - तृतीया एक० | सुहो शुभः असुहो अशुभः सुद्धो शुद्धः प्रथमा एक० । हवदि भवति-वर्तमान लट् अन्य पुरुष एक० । परिणामसभावो परिणामस्वभावः प्रथमा एक० । निरुवित जीवति इति जीवः, शोभते इति शुभः, शुद्ध्यति इति शुद्धः । समास परिणामः स्वभावः यस्य सः परिणामस्वभावः || ६ || उत्तरोत्तर स्वच्छता के लिये बढ़ता हुआ शुभोपयोग है । (१४) सप्तम गुणस्थानसे बारहवें गुणस्थान तक स्वच्छता व स्थिरतामें बढ़ता हुग्रा शुद्धोपयोग है । (१५) केवली भगवानके शुद्धयोगका फल आत्मोत्थ ज्ञान व ग्रानन्दका परिपूर्ण परिणाम है ।
सिद्धान्त - ( १ ) परिणामस्वभाव द्रव्य परिणमता रहना है । ( २ ) कर्माधिके सा न्निध्य में जीव शुभ अशुभभावरूप परिणमता है । (३) उपाधिके अभाव में जोव शुद्ध भावमय होता है ।
२- उपाधिसापेक्ष ग्रशुद्ध
दृष्टि - १ - उत्पादव्ययसापेक्ष अशुद्धद्रव्याथिकनय (२५) । द्रव्यार्थिकनय (२४) । ३ उपाध्यभावापेक्ष शुद्ध द्रव्याथिकनय ( २४ अ ) |
प्रयोग -- शुभ अशुभ भावोंको औपाधिक व क्षोभमय जानकर उनसे उपेक्षा करके सहज सिद्ध सहजशुद्ध सहजबुद्ध एकस्वभाव चिन्मात्र ग्रन्तस्तत्त्वकी और उपयोग रखनेका पौरुष
करना ॥ ६ ॥
परिणामको वस्तुके स्वभावरूपसे निश्चित करते हैं - [ इह ] इस लोक में [ परिरामं विना ] परिणाम के बिना [ श्रर्थः नास्ति ] पदार्थ नहीं है, [ श्रथं विना ] पदार्थ के बिना [ परिणाम: ] परिणाम नहीं है, [ अर्थः] वास्तव में पदार्थ [ द्रव्यगुणपर्ययस्थः] द्रव्य गुण पर्याय में रहने वाला और [ श्रस्तित्वनिर्वृत्तः ] उत्पादव्ययीव्यमय अस्तित्व से बना हुआ है ।
तात्पर्य - द्रव्य गुण पर्यायात्मक पदार्थ सत् है ।
टोकार्थ -- वास्तव में परिणाम के बिना वस्तु सत्ताको धारण नहीं करती, क्योंकि वस्तु की द्रव्यादिके द्वारा परिणामसे भिन्न उपलब्धि नहीं है । परिणामरहित वस्तु गधेके सींगके समान है तथा परिणामरहित वस्तुको दिखाई देने वाले गोरस दूध, दही वगैरह के परिणामों के क्योंकि साथ विरोध आता है । वस्तुके बिना परिणाम भी अस्तित्वको धारण नहीं करता, स्वाश्रयभूत वस्तुके प्रभाव में निराश्रय परिणामको शून्यताका प्रसङ्ग प्राता है । वस्तु तो ऊदूसामान्यस्वरूप द्रव्य में, सहभावी विशेषस्वरूप गुणोंमें तथा क्रमभावी विशेषस्वरूप पर्यायों में अवस्थित उत्पादव्ययघ्रौव्यमय अस्तित्व से बनी हुई है; इसलिये वस्तु परिणामस्वभाव वाली ही है ।