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प्रश्नो के उत्तर है। परन्तु मैं किस रूप मे ससार के पदार्थों के साथ संवद्ध हूँ? जव मानव मन मे यह जानने की जिज्ञासा उत्पन्न होती है, तव उम मे विवेक जागृत होता है। उसकी बुद्धि कार्य मे प्रवृत्त होती है, चिन्तन-मनन का प्रवाह प्रवहमान हो उठना है। इसी को दर्शन कहते है। दर्शन का मुख्य काम है जीवन और जगत का परिनान करना । दार्गनिक जीवन और जगत को खण्डा नही देवता। वह दोनो के अखण्ड स्वरूप का अध्ययन करता है, चिन्तन - मनन एव दर्शन करता है । वह अपनी बौद्धिक एव वैचारिक शक्ति का उपयोग प्रत्येक तत्त्व की गहराई तक पहुँचने मे करता है। उसका अन्वेषण समय या स्थान विशेष से वधा हया नहीं होता है। सच्चा दार्गनिक सम्पूर्ण काल और सत्ता का द्रष्टा होता है। उसके सोचने-विचारने का क्षेत्र एव चिंतन-मनन की दृष्टि विशाल एवं विस्तृत होती है । इससे हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि ज्ञान की अपेक्षा दर्शन का क्षेत्र अविक विस्तृत है। विचार-शक्ति की सभी गाखाएं, जान-विजान की सभी धाराएँ दर्शन के अन्तर्गत आ जाती हैं। वह ज्ञान की प्रत्येक वारा का चिन्तन-मनन एव अवलोकन करता है। विश्व के सभी तत्त्वो का दर्शन करता है। इससे हमारे कहने का यह तात्पर्य नहीं है कि वह सारे विश्व को प्रत्यक्ष रूप से देखता है । जव हम यह कहते है कि दर्शन सपूर्ण विश्व का चिन्तन करता है, तव इस का अर्थ यह समझना चाहिए कि वह विश्व के मूलभूत सिद्धान्तो का, तत्त्वो का दर्शन करता है या जानकारी करता है । जगत के मूल मे कौन सा तत्त्व काम कर रहा है? जीवन का उस के साथ क्या संबंध है ? प्राध्यात्मिक और भोतिक तत्त्वो की सत्ता मे क्या अन्तर हे? दोनो मे सामन्जस्य बैठ सकता है या नहीं? वास्तविक तत्त्व या सत्य की कसौटी क्या है?ज्ञान और बाह्य पदार्थ के बीच क्या सबंव है? इत्यादि तथ्यो का अन्वेषण करना दर्शन का मुख्य The spectator of all times and existence Plato.
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