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५० . कर्म विज्ञान : भाग ५ : कर्मबन्ध की विशेष दशाएँ
(३) मोहनीय की एक-मिथ्यात्व-मोहनीय।
(४) नामकर्म की बारह-निर्माण, स्थिर, अस्थिर, अगुरुलघु, शुभ, अशुभ, तैजस कार्मण-शरीर, वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्शनामकर्म।
(५) अन्तराय की पांच-दान-लाभ-भोग-उपभोग-वीर्यान्तराय।
नामकर्म की ध्रुवोदयी बारह प्रकृतियाँ हैं-निर्माण, स्थिर, अस्थिर, अगुरुलघु, शुभ, अशुभ, तैजस, कार्मणशरीर, तथा वर्णादि चतुष्क। इन बारह प्रकृतियों का उदय चारों गतियों के जीवों में सदैव रहता है। जब तक शरीर रहता है, तब तक इनका उदय बना रहता है। तेरहवें गुणस्थान के अन्त में जब इन शरीरसम्बद्ध बारह प्रकृतियों का उदयविच्छेद हो जाता है, वहाँ तक समस्त संसारी जीवों के इन १२ प्रकृतियों का उदय बना रहता है।
यद्यपि स्थिर और अस्थिर तथा शुभ और अशुभ, ये चार प्रकृतियाँ परस्पर विरोधिनी कहलाती हैं, किन्तु ये बन्ध की अपेक्षा से विरोधिनी हैं, उदय की अपेक्षा से विरोधिनी नहीं हैं। स्थिर नामकर्म के बन्ध के समय अस्थिर नामकर्म का बन्ध नहीं हो सकता, किन्तु उदय की अपेक्षा से इनमें परस्पर विरोध नहीं हैं, ये दोनों प्रकृतियाँ एक साथ उदय में रह सकती हैं। जैसे-स्थिर नामकर्म के उदय से हड्डी, दाँत आदि स्थिर होते हैं, जबकि अस्थिर नामकर्म के उदय से रुधिर, मूत्र आदि अस्थिर होते हैं। इसी प्रकार शुभ नामकर्म के उदय से मस्तक आदि शुभ अंग होते हैं, जबकि अशुभ नामकर्म के उदय से पैर आदि अशुभ अंग। अतएव ये चारों प्रकृतियाँ बंध की अपेक्षा विरोधिनी होने पर भी उदयापेक्षा अविरोधिनी मानी गई हैं।
पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण और पाँच अन्तराय, इन चौदह प्रकृतियों का उदय अपने क्षय (बन्ध उदय-विच्छेद) होने वाले गुणस्थान तक बना रहता है। इनका क्षय होता है-बारहवें गुणस्थान के अन्तिम समय में। अतएव इन्हें ध्रुवोदयी कहा गया है। मोहनीय कर्म की मिथ्यात्व प्रकृति का उदय-विच्छेद प्रथम मिथ्यात्व गुणस्थान के अन्त में होता है। इसलिए प्रथम मिथ्यात्व गुणस्थान तक मिथ्यात्व का उदय ध्रुव होता है, इस कारण इसे ध्रुवोदयी प्रकृति में गिना है।
इस प्रकार नामकर्म की बारह, ज्ञानावरण की पाँच, दर्शनावरण की चार, अन्तरायकर्म की पाँच और मोहनीय कर्म की एक; यों कुल सत्ताइस प्रकृतियाँ ध्रुवोदयी हैं। १. (क) निमिण थिर अथिर अगुरु य, सुह-असुहं तेय कम्म-चउवना।
नाणंतराय दंसण मिच्छं धुव-उदय सगवीसा॥६॥ . कर्मग्रन्थ भा. ५, विवेचन (मरुधरकेसरी जी) पृ. २७ से २९ तक
(शेष पृष्ठ ५१ पर)
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