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मोह से मोक्ष तक की यात्रा की १४ मंजिलें ३२७ भाव है। उपशमक इस गुणस्थान में सूक्ष्म लोभ का सर्वथा उपशम कर देता है, जबकि क्षपक सूक्ष्म लोभ का सर्वथा क्षय कर देता है। गोम्मटसार में इसका स्वरूप बताते हुए कहा गया है-जैसे कुसुंभी रंग के वस्त्र को धोने के पश्चात् भी उसमें बारीक लालिमा रह जाती है इसी प्रकार इस गुणस्थान में भी अत्यन्त सूक्ष्म राग-सूक्ष्म संज्वलन कषाय रह जाता है, इसीलिए इस गुणस्थान को सूक्ष्म-सम्पराय कहा जाता है। इस गुणस्थानवी जीव भी उपशमक या क्षपक होता है। इस गुणस्थान में संज्वलन लोभ के सिवाय चारित्रमोहनीय कर्म की दूसरी कोई भी ऐसी प्रकृति नहीं रहती, जिसका उपशमन या क्षपण न हुआ हो। अतः जो उपशमक होते हैं, वे लोभकषाय मात्र का उपशम तथा जो क्षपक होते हैं, वे लोभ कषाय मात्र का क्षपण कर देते हैं। इस गुणस्थानवर्ती साधक सूक्ष्म कषाय का सर्वथा उपशमन करके उपशम श्रेणी का और क्षय करके क्षपक श्रेणी का आरोहण करता है। उपशम श्रेणी का आरोहण करने वाला दशम गुणस्थानवर्ती साधक दसवें गुणस्थान से समस्त कषायों का उपशम करके ग्यारहवें में जाता है, और क्षपकश्रेणी का आरोहण करने वाला साधक कषायों का क्षय करके दसवें से सीधा बारहवें गुणस्थान में पहुँच जाता है। सूक्ष्म लोभ को वेदन करने वाला साधक चाहे उपशम श्रेणी पर आरोहण करने वाला हो, या क्षपक श्रेणी पर, वह यथाख्यात-चारित्र से कुछ ही न्यून रहता है। अर्थात्-सूक्ष्म लोभ का उदय होने से यथाख्यातचारित्र में कुछ कमी रहती है। वैसे उपशमक यहाँ शेष रहे हुए संज्वलन लोभ को सर्वथा उपशान्त करता है, जबकि क्षपक सर्वथा क्षय करता है। इस गुणस्थान की कालस्थिति जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है।
: १. गुणस्थान, क्रमारोह, श्लोक ७३ '. २: (क) द्वितीय कर्मग्रन्थ विवेचन (मरुधरकेसरी), पृ. १५ . . (ख) आत्मतत्वविचार, पृ. ४९४
(ग) जैन आचार : सिद्धान्त और स्वरूप. पृ. १६७. (घ) सम्परायः कषायः।
-तत्त्वार्थ वार्तिक ९/१/२० (ङ) सूक्ष्म सम्परायः सूक्ष्म संज्वलन लोभ। -गोम्मटसार (कर्मकाण्ड) जी. प्र. टीका (च) धुव-कोसुंभ-वत्थं होदि जहा सुहम-राय-संजुत्तं। एवं सुहुम-कसाओ सुहुम सरागोत्ति णादव्वो॥
-गोम्मटसार (जीवकाण्ड) गा. ५८ (छ) जैन दर्शन में आत्मविचार (डॉ. लालचन्द्र जैन), पृ. २६१-२६२ ।। .. (ज) ......सो सुहम-सम्पराओ जहक्खाएणूणओ किंचि॥
-गोम्मटसार (जीवकाण्ड) गा. ६०
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