Book Title: Karm Vignan Part 05
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 590
________________ ५७० कर्म विज्ञान : भाग ५ : कर्मबन्ध की विशेष दशाएँ उसे कहीं भी जाने-आने नहीं देती, न ही कोई काम करने देती। उस बच्चे को पढ़ाया-लिखाया भी नहीं। नतीजा यह हुआ कि वह लड़का ३९ साल का हुआ, तब तक वह बिलकुल अपंग के समान, पराधीन और निश्चेष्ट-सा रहा। उसकी मां ३९. साल के बच्चे को निराधार छोड़कर मर गई। वह ३९ साल का बच्चा अब न तो स्वयं कोई काम कर सकता था, न ही स्वयं खा-पी सकता था, न ही और कोई : जीवनोपयोगी क्रिया कर सकता था। फलतः वह भी तीन-चार दिन में ही माँ की मृत्यु के अत्यधिक शोक में रिब-रिब कर मर गया। यह है, अल्प-राग से तीव्र राग की मुंहबोलती कहानी। . उसी तरह कुछ माताओं का पुत्र के प्रति रागभाव दिनोंदिन बढ़ता जाता है और बढ़ते-बढ़ते अतितीव्रराग की कोटि में पहुँच जाता है, तब अकस्मात् पुत्र की मृत्यु का समाचार सुनते ही मां की भी मृत्यु हो जाती है। कई बार पिता या माता के प्रति पुत्र का रागभाव बढ़ जाता है, तब पिता या माता की मृत्यु का समाचार सुनते ही पुत्र . का हार्टफेल हो जाता है। संतानप्राप्ति की कामना का राग मन के प्रकोष्ठ में पड़ा रहता है। बहुत ही मनौती या प्रतीक्षा के बाद जब एक पुत्र हो जाता है, तब उस इकलौते पुत्र के प्रति रागभाव बढ़ता जाता है। यदि वह होशियार है, कमाऊ है तो रागभाव अधिकाधिक बढ़ता जाता है। इस प्रकार राग से राग की वृद्धि का यह प्रथम विकल्प है। इसके और भी अनेक रूप हो सकते हैं। द्वितीय विकल्प : राग का द्वेष में रूपान्तर (२) राग से द्वेष- यह रागबन्धन के उदय से रागभाव में लिप्त जीव द्वारा किसी प्रबल कारणवश या द्वेषबन्ध के उदय से द्वेषभाव में परिणत हो जाने वाले जीव का प्रकार है। अर्थात- राग का द्वेष में रूपान्तर होने का प्रकार है। जो राग वर्षों तक एक ही स्थिति में न रहता हुआ किसी निमित्त के मिलने पर द्वेषभाव में परिणत हो जाता है, वह राग से द्वेष के प्रादुर्भाव होने का विकल्प है। जब राग द्वेष में बदल जाता है, तब सारा वातावरण ही विपरीत एवं क्षुब्ध हो जाता है। कल तक जिस व्यक्ति के प्रति किसी का प्रेम था, स्नेहराग था, कामराग था, या दृष्टिराग था, आज वह द्वेष में रूपान्तरित हो गया है। राग के द्वेष में रूपान्तरित हो जाने पर कल का मित्र आज शत्र बन जाता है, कल की प्रेमिका या प्रिया, आज जहरीली नागिन बन जाती है, कल तक किसी वस्तु या मान्यता के प्रति जो दृष्टिराग था, वह आज घृणा, विद्वेष या हेयभाव में परिवर्तित हो जाता है। कल तक जो स्नेह था, वह आज सन्देह में पलट १. ये निष्क्रिय और अयोग्य बच्चे (भाईसाहब, वंशीधरजी, बालनिकेतन, जोधपुर) से सारांश Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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