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४९४ कर्म विज्ञान : भाग ५ : कर्मबन्ध की विशेष दशाएँ
(३) क्षायिक भाव के भी दो भेद किये गए हैं-(१) क्षय और (२) क्षयनिष्पन्न । कर्म के सर्वथा अभाव को क्षय कहते हैं और यही क्षयभाव क्षायिक भाव है। कर्मों के सर्वथा अभाव होने के फलस्वरूप उत्पन्न हुआ जीव का परिणाम-विशेष क्षयनिष्पन्न कहलाता है। यथा-केवलज्ञानित्व, केवलदर्शनित्व, क्षीणमतिज्ञानावरणत्व, क्षीणश्रुतज्ञानावरणत्व, क्षीण-अवधिज्ञानावरणत्व, क्षीण-मनःपर्यायज्ञानावरणत्व यावत् क्षीण वीर्यान्तरायत्व और मुक्तत्व आदि। ये सभी भाव कर्मावरण का नाश होने के फलस्वरूप उत्पन्न हुए हैं, इस कारण ये क्षयनिष्पन्न कहलाते हैं।
(४) क्षायोपशमिक भाव भी दो प्रकार का है-क्षयोपशम और क्षयोपशम निष्पन्न। उदय-प्राप्त कर्मांश के क्षय और अनुदयप्राप्त कर्मांश के विपाकाश्रयी उपशम को क्षयोपशम कहते हैं। यह क्षयोपशम चार घाति कर्मों का ही होता है, अघाति कर्मों का नहीं। क्षयोपशम ही क्षायोपशमिक है। तथा घातिकर्मों के क्षयोपशम से उत्पन्न हुआ मतिज्ञानादिलब्धिरूप आत्मा का जो परिणाम विशेष है उसे क्षयोपशमनिष्पन्न कहते हैं।
इसी प्रकार क्षायोपशमिक भाव चारों घातिकर्मों (ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अन्तराय) में पाया जाता है; क्योंकि घातिकर्म आत्मा के ज्ञानादि गुणों का घात करते हैं। अतः उनका यथायोग्यरीति से सर्वोपशम या क्षयोपशम होने पर ज्ञानादि गुण प्रगट होते हैं। किन्तु अघातिकर्म आत्मा के किसी भी गुण का घात नहीं करते, जिससे उनका सर्वोपशम या क्षयोपशम भी नहीं होता। घातिकर्मों में भी केवल-ज्ञानावरण तथा केवलदर्शनावरणीय के रसोदय के निरोध का अभाव होने से, इन दो प्रकृतियों के सिवाय शेष घाति प्रकृतियों का क्षयोपशम समझना चाहिए।
यह क्षयोपशमनिष्पन्नरे अनेक प्रकार का है। यथा-क्षायोपशमिक आभिनिबोधिकज्ञानलब्धि, श्रुतज्ञानलब्धि, अवधिज्ञानलब्धि, मनःपर्यायज्ञानलब्धि,
१. (क) खइए दुविहे पण्णत्ते तं.-खइए अ, खयनिप्फण्णे ।... - खीण
केवलणाणावरणे, खीण केवलदंसणावरणे, खीण दंसणमोहणिजे खीण चरित्तमोहणिजे, खीणदाणंतराए-खीणलाभंतराए खीणभोगंतराए खीणउवभोगंतराए खीणवीरियंतराए। “से तं खइए।
-अनुयोगद्वार सूत्र ४२, ४४ (ख) पंचसंग्रह भा. २, १ विवेचन २. क्षयोपशम में उपशम शब्द के दो अर्थ अभिप्रेत हैं-(१) उदयप्राप्त कर्म का क्षय और सत्तागत कर्म को हीन शक्ति वाला करके ऐसी स्थिति में स्थित करना कि स्वरूप से
(शेष पृष्ठ ४९५ पर)
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