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५६४ कर्म विज्ञान : भाग ५ : कर्मबन्ध की विशेष दशाएँ
राग-द्वेष के पर्यायवाची शब्द भी दुःखदायी हैं, सुखकारक नई ___संसार से सभी जीवों को सुख प्रिय है, दुःख अप्रिय है। वे अहर्निश सुखप्राप्ति
के लिए प्रयत्न करते हैं। दुःखनिवृत्ति का वे जी-तोड़ प्रयत्न करते हैं। जिस वस्तु या व्यक्ति को वे अनुकूल मानते हैं, उस पर राग करने में सुख समझते हैं, या जो वस्तु उनको अभीष्ट है, उसे पाकर वे राजी होते हैं। जो प्रतिकूल हो, उसे पाकर नाराज। प्रतिकूल अनिष्ट वस्तु के प्रति अनिच्छा प्रगट करते हैं। परन्तु क्या इस प्रकार अनुकूल-प्रतिकूल या इष्ट-अनिष्ट के प्रति इच्छा-अनिच्छा, प्रीति-अप्रीति, आसक्तिघृणा आदि के रूप में राग-द्वेष करने से जिस सुख की कल्पना जीव करते हैं, क्या वह सुख चिरस्थायी रहता है अथवा अनुकूल के प्रतिकूल होते ही दुःख में परिणत हो जाता है। इसी दृष्टि से हम इन दोनों का विश्लेषण करेंगे।
राग और द्वेष के जिन पर्यायवाची शब्दों का महान् पुरुषों ने निरूपण किया है, उनमें से प्रत्येक शब्द को टटोलें तो पता लग जाएगा कि वे सबके सब. क्षणिक सुख या सुखाभास की प्रतीति ही कराते हैं। मरुभूमि में दूर से दिखाई देने वाले मृगमरीचिका में जल की भांति राग और द्वेष से माने जाने वाले क्षणिक सुख है। 'प्रशमरति' में राग के पर्यायवाची शब्द ये बताये हैं
इच्छा मूर्छा कामः स्नेहो, गायं ममत्वमभिनन्दः। अभिलाषा इत्यनेकानि राग-पर्यायवचनानि॥१८॥
इच्छा, मूर्छा, कामना, स्नेह, गृद्धि, ममता, हर्षावेश, अभिलाषा, लालसा और तृष्णा आदि अनेक राग के पर्यायवाचक शब्द हैं।
इसी प्रकार द्वेष के पर्यायवाची शब्द भी 'प्रशमरति' में बताए गए हैंईर्ष्या रोषो, दोषो, द्वेषः परिवाद-मत्सरासूयाः।
वैर-प्रचण्डनाद्या नैके द्वेषस्य पर्यायः॥ १९॥
ईर्ष्या, रोष (क्रोध), दोष (दोषारोपण), द्वेष (वैर-विरोध), निन्दा, चुगली, मात्सर्य और दोषदृष्टि, वैर, प्रचण्डन (भांडना,, बदनाम करना) आदि द्वेष के अनेक पर्यायवाचक शब्द हैं। - वास्तव में गहराई से चिन्तन किया जाए तो राग और द्वेष के इच्छा-मूर्छा आदि तथा ईर्ष्या-रोष आदि जो पर्यायवाचक शब्द बताए हैं, वे राग-द्वेष को विभिन्न रूप में
१. सव्वे सुहसाया दुहपडिकूला। २. देखें, प्रशमरति श्लो. १८, १९
-आचारांग श्रु.१
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