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५१२ कर्म विज्ञान : भाग ५ : कर्मबन्ध की विशेष दशाएँ उदय से श्रेणी चढ़ने वाला शेष संज्वलन कषायों का। किन्तु जिन कर्मों का न तो बन्ध ही होता है, न उदय ही होता है, उनके अन्तरकरण सम्बन्धी दलिकों का अन्य प्रकृतियों में क्षेपण करता है। जैसे- द्वितीय और तृतीय कषाय का।
इस चतुभंगी का स्पष्टीकरण इस प्रकार है
(१) जिन कर्मों का उस समय बन्ध और उदय होता है, उनके दलिकों की प्रथम स्थिति और द्वितीय स्थिति में क्षेपण किया जाता है।
(२) जिन कर्मों का उस समय उदय ही होता है, उनको प्रथम स्थिति में ही क्षेपण किया जाता है।
(३) जिन कर्मों का उस समय बन्ध ही होता है, उनके दलिकों को द्वितीय स्थिति में क्षेपण किया जाता है।
(४) जिन कर्मों का न तो उदय होता है और न बन्ध, उनके दलिकों को अन्य प्रकृतियों में क्षेपण किया जाता है।
क्रमशः नोकषायों और कषायों के उपशमन की क्रमप्ररूपणा __ अन्तरकरण करके नपुंसकवेद का उपशम करता है, उसके बाद एक अन्तर्मुहर्त में स्त्रीवेद का उपशम और उसके हास्यादिषट्क उपशम होते ही पुरुषवेद के बन्ध, उदय और उदीरणा का विच्छेद होता है। - हास्यादिषट्क की उपशमना के अनन्तर समय कम दो आवलिकामात्र में सकल पुरुषवेद का उपशम करता है। जिस समय में हास्यादिषट्क उपशान्त हो जाते हैं और पुरुषवेद की प्रथम स्थिति क्षीण हो जाती है, उसके अनन्तर समय में अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण और संज्वलन क्रोध का एक साथ उपशम करना प्रारम्भ करता है। जब संज्वलन क्रोध की प्रथम स्थिति में एक आवलिका काल शेष रह जाता है, तो संज्वलन क्रोध के बन्ध, उदय और उदीरणा का विच्छेद हो जाता है
और अप्रत्याख्यानावरण तथा प्रत्याख्यानावरण, क्रोध का उपशम हो जाता है। उस समय संज्वलन क्रोध की प्रथम परिस्थितिगत एक आवलिका को और ऊपर की स्थितिगत एक समय कम दो आवलिका में बद्ध दलिकों को छोड़कर शेष दलिक उपशान्त हो जाते हैं। उसके बाद समय कम दो आवलिका काल में संज्वलन क्रोध का उपशम हो जाता है।
जिस समय संज्वलन क्रोध के बन्ध, उदय और उदीरणा का विच्छेद होता है, उसके अनन्तर समय से लेकर संज्वलन मान की द्वितीय स्थिति से दलिकों को ले
१. पंचम कर्मग्रन्थ , गा. ९८ पर विवेचन (पं. कैलाशचन्द्र जी), पृ. ३१७, ३१८
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