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५४८ कर्म विज्ञान : भाग ५ : कर्मबन्ध की विशेष दशाएँ हैरान-परेशान करते हैं। जहाँ तक उक्त ऋण की अवधि पूरी नहीं होती, वहाँ तक ऐसा व्यवहार होता रहता है। ऐसी स्थिति को प्रेतबाधा, भूतबाधा या डाकिनीशाकिनी आदि की बाधा अथवा ऊपरी चक्कर कहते हैं।
लोकव्यवहार में कहा जाता है-इसे सौत, सासु, देवरानी, जेठानी, नन्द या भाभी. अथवा चाचा, ताऊ या बेटा आदि देव बनकर कष्ट देते हैं। परन्तु ये सब ऋणानुबन्ध (पूर्वकर्म) के अशुभ उदय हैं। अशुभ कर्म का उदय हो तो देव हो, मनुष्य हो, तिर्यञ्च हो; उसका ऋण चुकाने पर ही छुटकारा हो सकता है। ध्यान रहे कि मनुष्य : और देव-देवी के ऋणानुबन्ध का उदय अत्यन्त अल्प प्रमाण में होता है।
अशुभ ऋणानुबन्ध की एक सच्ची घटना इस प्रकार है- एक बहन थी उसकी सासु मरकर देवी बनी थी। सासु स्वभाव से क्रूर थी और बहू के प्रति उसके अन्तर्मानस में द्वेष भाव था। जब सासु देवी बनी तो उसने बहू को कष्ट देना प्रारम्भ किया। बहूरानी घण्टों तक बेसुध रहती। उसके शरीर में अपार वेदना होती। वह देवी उसके शरीर में प्रविष्ट होकर उसे पछाड़ती। तीस वर्ष तक यह क्रम चलता रहा। जब अशुभ ऋणानुबन्ध के उदय की अवधि समाप्त हुई तब वह बहन स्वस्थ हो गई। यह अनुभवसिद्ध सत्य है। अशुभ ऋणानुबन्ध उदय के समय जप-तप की साधना की जाय तो वे कर्म यथाशीघ्र क्षीण किये जा सकते हैं। कष्ट या पीड़ा का अनुभव भी कम हो जाता है। ..
एक अन्य घटना लीजिए-पिता-पुत्री के अशुभ ऋणानुबन्ध की-भोगी भाई के एक स्नेही संबंधी के कमला नाम की एक पुत्री थी। उसकी बुद्धि तीक्ष्ण नहीं थी? पर उसका हृदय सरल था। वह सेवाभावी थी। किन्तु पिता का पुत्री के प्रति जो स्नेह होना चाहिए उसका अभाव था। वह बिना किसी कारण के पुत्री को उपालम्भ देता था। जब पिता रुग्ण हो गया तब उस पुत्री ने अग्लान भाव से पिता की सेवा शुश्रूषा की। पिता की मृत्यु हो गई। चौथे दिन कमला को इस प्रकार का आभास हुआ कि उसका पिता घर में चक्कर लगा रहा है। रात्रि के १२ बजे भयंकर रूप बनाकर वह पुत्री को डराने लगा। पुत्री नवकार महामन्त्र का जाप कर रही थी। इसलिए उसका जोर नहीं चला। अन्त में क्रुद्ध होकर उसने कहा-तू धर्म की शरण में चली गई है, इसलिए मेरा जोर नहीं चल रहा है। तीन माह तक उसने कष्ट दिये। लेकिन कमला नवकार मंत्र का जाप निष्ठापूर्वक करती रही। तीन माह के बाद उपद्रव शांत हो गया। दूसरे शब्दों में अशुभ ऋणानुबन्ध समाप्त हो गया।
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