Book Title: Karm Vignan Part 05
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

Previous | Next

Page 558
________________ ५३८ कर्म विज्ञान : भाग ५ : कर्मबन्ध की विशेष दशाएँ मुझे आपकी बहन ने मार डाला था। मर कर मैं ही आपके पुत्र रूप में जन्मा हूँ।" पिता ने पहले तो कहा-"क्या बहकी-बहकी बातें कर रहा है तू?" परन्तु उस लड़के ने जब बार-बार वही बात दोहराई तो पिता के मस्तिष्क में उस पंजाबी की हत्या की बात चलचित्र की तरह घूम गई । फिर दबी जबान से पूछा-"कितने रुपये बचे हैं? यह बात तू क्यों पूछ रहा है?" लड़का बोला-"बस जिस दिन सारी रकम समाप्त हो जाएगी, उस दिन मैं इस दुनिया से चला जाऊंगा।" "पर यह बात तो बता-तेरे पीछे जो यह बहू आई है, उसने क्या पाप किया था, जो इसको असमय में विधवा होना पड़ेगा?" लड़के ने कहा-"इसी ने तो सारे पापड़ बेले थे। मुझे मारने का काम इसी ने ही किया था। उस पाप का फल अब यह भोगेगी और रिब रिब कर मरेगी।" पिता सुनकर गहरे चिन्तन में डूब गया। पश्चात्ताप करने लगा। पर अब पश्चात्ताप से क्या होना था? अशुभ ऋणानुबन्ध उदय में आ गया था। जिस दिन वह रकम, जो पंजाबी को मार कर हस्तगत की थी, खत्म हुई, उसी दिन वह लड़का चल बसा। पिता पहले की तरह दीन-हीन-निर्धन अवस्था में आ गया । उसकी । पूर्वभव की बहन, जो अब पुत्रवधू बनकर आई थी, गलित कुष्ट रोग से ग्रस्त होकर रिब-रिब कर मर गई। .. भाई ने इस रोमहर्षक घटना से विरक्त होकर काशी जाकर संन्यास ग्रहण कर लिया। यह था, अशुभ ऋणानुबन्ध के उदय का फल! अशुभ-ऋणानुबन्ध के फलस्वरूप उक्त पंजाबी मुसाफिर से सम्बन्ध हुआ, लोभवश नया अशुभबन्ध हुआ। उस अशुभ के उदय में आने पर जो पंजाबी पुत्र बनकर अपना ऋण वसूलने आया था, उसका मर्मान्तक वियोग हुआ, सारा धन उसके इलाज में स्वाहा हो गया। अशुभ ऋणानुबन्ध के उदय में आने से बहन को पुत्रवधू के रूप में ऋण चुकाना पड़ा, वैधव्य और दुःसाध्य रोग की पीड़ा से संतप्त होकर अन्ततः इस दुनिया से कूच कर गई। इसी प्रकार परिवार में सास-बहू, ननद-भौजाई, देवरानी-जिठानी, पति-पत्री, पिता-पुत्र, माता-पुत्री, भाई-बहन, भाई-भाई आदि के बीच पूर्वबद्ध अशुभ ऋणानुबन्ध का उदय होने पर अनबन, मनो-मालिन्य, क्लेश-कलह आदि हो जाते हैं, समाज और राष्ट्र में भी दूसरे समाज (जाति, कौम, सम्प्रदाय, पक्ष आदि) और राष्टों के साथ परस्पर संघर्ष, द्वेष, वैर, विरोध एवं युद्ध तक की नौबत आ जाती है, जिसमें हजारों लाखों निर्दोष व्यक्ति मारे जाते हैं। एक ऋणानुबन्ध के उदय के साथ १. परमार्थ (गुजराती मासिक पत्रिका) से संक्षिप्त Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614