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ऊर्ध्वारोहण के दो मार्ग :
उपशमन और क्षपण
दो प्रकार के पर्वतारोही के तुल्य : दो प्रकार के श्रेणी-आरोहक पर्वत के शिखर पर चढ़ने वाले यात्री दो प्रकार के होते हैं। कुछ यात्री ऐसे होते हैं, जो पर्वतारोहण करते समय आने वाले तूफानों, बवण्डरों, हवाओं तथा थकान, निद्रा, आलस्य, अनुत्साह आदि को शान्त करते हुए आगे बढ़ते हैं। कई बार तो ऊपर चढ़ते-चढ़ते उनको इतनी थकान आ जाती है कि वे पस्तहिम्मत होकर वहीं ठहर जाते हैं, फिर तरोताजा होकर चढ़ते हैं, और फिर थकान या अतिश्रम से अशक्त होकर बैठ जाते हैं। कई बार कई पर्वत श्रेणियाँ पार करने के बाद उनका पैर फिसल जाता है, और वे लुढ़कते-लुढ़कते चौथी श्रेणी तक आ जाते हैं, कई-कई तो ऐसे फिसलते हैं कि तीसरी, दूसरी तक आकर रुकते हैं, कई तो ठेठ तलहटी की प्रथम श्रेणी पर आकर रुकते हैं। उन पर्वतारोहियों की दशा देखते ही बनती है।
दूसरे प्रकार के पर्वतारोही मजबूत दिल वाले, अति-उत्साही, दृढ़ पराक्रमी और सशक्त होते हैं। पर्वतारोहण करते समय बीच में थकान का नाम नहीं लेते, भोजन, विश्राम और निद्रा की भी वे परवाह नहीं करते । इनके लिए तो उनके मन में विचार तक नहीं आता। जैसे एक आविष्कर्ता वैज्ञानिक अपनी प्रयोगशाला में बैठा-बैठा अहर्निश जागरूक और उत्साहयुक्त होकर अपने आविष्कार के प्रयोग में इतना तल्लीन-तन्मय हो जाता है कि नींद, भूख, थकान, अशक्ति, विश्राम, भोजन आदि सबको भूल जाता है, इन सबकी जरा भी चिन्ता नहीं करता, एकमात्र अपने प्रयोग में जुटा रहता है। इसी प्रकार वह दृढ़ मोक्ष पर्वतारोही अपने मार्ग में आने वाली विघ्नबाधाओं पर विजय प्राप्त करता हुआ आगे से आगे बढ़ता हुआ, अन्तिम श्रेणी पर चढ़ जाता है, जहाँ से वापस लौटने का नाम नहीं लेता, वहाँ से वह मोक्ष के अन्तिम
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