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४३८ कर्म विज्ञान : भाग ५ : कर्मबन्ध की विशेष दशाएँ
चौथे से लेकर सातवें गुणस्थान तक में सत्ता-प्ररूपणा अनन्तानुबन्धी कषाय-चतुष्क और दर्शनमोहनीयत्रिक, इन ७ प्रकृतियों का जिन्होंने क्षय किया है, उनकी अपेक्षा से चौथे से लेकर सातवें गुणस्थान तक, चार गुणस्थानों में १४१ प्रकृतियों की सत्ता होती है। यह १४१ प्रकृतियों की सत्ता बिना श्रेणी वाले क्षायिक सम्यक्त्वी के समझना चाहिए। तथा क्षायिक सम्यक्त्वी होने पर भी जो चरमशरीरी नहीं हैं, किन्तु जिन्हें मोक्ष के लिए जन्मान्तर ग्रहण करना बाकी है, उन जीवों की अपेक्षा से १४१ प्रकृतियों की सत्ता का पक्ष समझना चाहिए।
निष्कर्ष यह है कि १४१ प्रकृतियों की सत्ता दो प्रकार के जीवों की अपेक्षा सें मानी गई है- (१) श्रेणी नहीं चढ़ने वाले क्षायिक सम्यक्त्वी अनेक जीवों की अपेक्षा से सामान्य से चौथे से लेकर सातवें गुणस्थान तक (चार गुणस्थानों) में, (२)क्षायिक सम्यक्त्वी होने पर भी जो चरमशरीरी जीव नहीं हैं, ऐसे अनेक जीवों की अपेक्षा से।
उपशम श्रेणी वाले चार गुणस्थानों में सत्ता की प्ररूपणा उपशमश्रेणी आठवें गुणस्थान से ग्यारहवें गुणस्थान तक मानी जाती है। अर्थात्ये चार गुणस्थान उपशम श्रेणी के होते हैं और उपशम श्रेणी मांडने वाले जीवों के आठवें से लेकर ग्यारहवें गुणस्थान-पर्यन्त चार गुणस्थानों में अनन्तानुबन्धी कषायचतुष्क और नरकायु तथा तिर्यंचायु इन ६ प्रकृतियों को १४८ सामान्य सत्तायोग्य प्रकृतियों में से कम कर देने पर १४२ प्रकृतियों की सत्ता मानी जाती है।
क्षपक श्रेणी वाले चार गुणस्थानों में सत्ता की प्ररूपणा ___ क्षपक जीवों की अपेक्षा से चार गुणस्थानों में नरक-तिर्यञ्च-देवायु इन तीन प्रकृतियों के सिवाय १४५ प्रकृतियों की, तथा सप्तक के बिना १३८ प्रकृतियों की सत्ता अनिवृत्ति गुणस्थान के प्रथम समय तक होती है। __ जो जीव वर्तमान जन्म में क्षपक श्रेणी मांडने वाले हैं और चरमशरीरी हैं, अर्थात्-अभी तो वे औपशमिक या क्षायोपशमिक सम्यक्त्वी ही हैं, किन्त क्षपकश्रेणी पर अवश्य आरूढ़ होने वाले तथा इसी जन्म में मोक्ष प्राप्त करने वाले हैं, उनके मनुष्यायु की ही सत्ता रहती है। अन्य तीन आयुओं की सत्ता नहीं रहती, और न
१. (क) अपुव्वाइ-चउक्के अण-तिरि-निरयाउ विणु बियाल-सयं। . .
सम्माइ-चउसु सत्तग-खयंमि, इगचत्तसयमहवा ॥ २६॥ -द्वितीय कर्मग्रन्थ (ख) द्वितीय कर्मग्रन्थ गा. २६ विवेचन (मरुधरकेसरीजी), पृ. १०५ से १०७ तक
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