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मोह से मोक्ष तक की यात्रा की १४ मंजिलें ३३७
रहित होते ही वे एक समय मात्र की ऋजुगति से ऊपर की ओर सिद्धि क्षेत्र में चले जाते हैं। आत्मा के इस विकासक्रम से स्पष्ट है कि जैनधर्म में कोई अनादि सिद्ध परमात्मा नहीं माना गया है, किन्तु यह सिद्ध किया गया है कि प्रत्येक आत्मा अपने पुरुषार्थ से परमात्मा बन सकता है।
गुणस्थान क्रम : गाढ़ कर्मबन्ध से पूर्ण मोक्ष तक
कर्मबन्ध के हेतुओं का अभाव एवं निर्जरा से कर्मों का आत्यन्तिक क्षय होता है, यही कर्मों से पूर्ण मुक्ति है। गुणस्थान कर्मों से आंशिक मुक्ति से लेकर पूर्ण मुक्ति तक के क्रमिक सोपान हैं। इनके स्वरूप का सूक्ष्मता से अवलोकन करने पर स्पष्ट प्रतीत होता है कि भले ही चौदहवें गुणस्थान में पहुँचने पर पूर्ण मुक्ति हो, लेकिन चतुर्थ गुणस्थान में सम्यक्त्व प्राप्ति से दर्शनमोह तथा अनन्तानुबन्धी कषायचतुष्क से मुक्ति हो जाती है, तदनन्तर पंचम गुणस्थान में अप्रत्याख्यानावरणीय कषायचतुष्क से मुक्ति हो जाती है, फिर छठे गुणस्थान में प्रत्याख्यानावरणीय कषाय- चतुष्क से तथा अविरति से मुक्ति हो जाती है। सातवें - आठवें गुणस्थान में संज्वलन - कषाय चतुष्क रहते हुए भी प्रमाद नामक कर्मबन्ध हेतु से साधक मुक्त हो जाता है। नौवें गुणस्थान में प्रमादमुक्ति के साथ संज्वलन के तीन कषायों से भी मुक्ति हो जाती है, केवल संज्वलन लोभ-कषाय रहता है। दसवें गुणस्थान में संज्वलन लोभ से भी मुक्त होकर प्रमाद और कषाय दोनों से सर्वथा मुक्ति हो जाती है। ग्यारहवें गुणस्थान में मोह उपशान्त होने से परिणामों में विशेष विशुद्धि हो जाती है। बारहवें गुणस्थान में मोह क्षीण हो जाने पर अन्त में चार घातिकर्मों से मुक्ति प्रारम्भ हो जाती है । तेरहवें गुणस्थान में घातिकर्मचतुष्क से सर्वथा मुक्ति - जीवन्मुक्ति हो जाती है। और फिर चौदहवें गुणस्थान में तो शेष रहे चार अघातिकर्मों से भी, तथा कर्मबन्ध के हेतुरूप योगों से भी सर्वथा मुक्ति-पूर्ण मुक्ति हो जाती है । २
आत्मा के विकासक्रम की सात क्रमिक अवस्थाएँ
आत्मा की मोहमूढ़दशा से लेकर सर्वथा मोहमुक्तदशा तक का आध्यात्मिक विकास क्रम गुणस्थानों का स्वरूप जानने से ही जाना जा सकता है। इस दृष्टि से आत्मा के विकास क्रम को निम्नोक्त क्रम से भी समझा जा सकता है- (१)
१. (क) आत्मतत्व विचार, पृ. ४९७
(ख) जैन आचार : सिद्धान्त और स्वरूप, पृ. १७०
२. श्रीमद् राजचन्द्र भा. १ (संशोधित द्वितीय आवृत्ति), भावांशग्रहण
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