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४३० कर्म विज्ञान : भाग ५ : कर्मबन्ध की विशेष दशाएँ में निद्रा और प्रचला, इन दो प्रकृतियों का बन्ध-विच्छेद हो जाने से दूसरे भाग से छठे भाग तक (पांच भागों) में ५६ प्रकृतियों का बन्ध होता है। तथा छठे भाग के अन्त में इन ५६ प्रकृतियों में से निनोक्त ३० प्रकृतियों का बन्ध-विच्छेद हो जाता है- (१) देवगति, (२) देवानुपूर्वी (सुरद्विक), (३) पंचेन्द्रिय जाति, (४) शुभविहायोगति, (५) त्रस, (६) बादर, (७) पर्याप्त, (८) प्रत्येक (९) स्थिर, (१०) शुभ, (११) सुभग, (१२) सुस्वर, (१३) आदेय (त्रसनवक), (१४) वैक्रिय शरीर नाम, (१५) आहारक शरीर नाम, (१६) तैजस शरीरनाम, (१७) कार्मण शरीर नाम, (१८) समचतुरस्र संस्थान, (१९) वैक्रिय अंगोपांग, (२०) आहारक . अंगोपांग, (२१) निर्माण नाम, (२२) तीर्थंकर नाम, (२३) वर्ण, (२४) गन्ध, (२५) रस, (२६) स्पर्श (वर्णचतुष्क), (२७) अगुरुलघु, (२८) उपघात, (२९) पराघात, और (३०) श्वासोच्छ्वास (अगुरु लघुचतुष्क)। इस प्रकार नामकर्म की ये ३० प्रकृतियाँ पूर्वोक्त ५६ प्रकृतियों में से घटा देने से शेष २६ प्रकृतियों का ही बन्ध आठवें गुणस्थान के सातवें भाग में होता है। नामकर्म की उक्त बन्धविच्छेदयोग्य ३० प्रकृतियाँ आठवें गुणस्थान के छठे भाग तक ही बांधी जाती हैं, आगे नहीं। ... __(९) नौवें अनिवृत्तिबादर गुणस्थान के पांच भाग हैं। प्रथम भाग में २२ कर्म-प्रकृतियों का बन्ध होता है। आठवें गुणस्थान के सातवें भाग में बंधयोग्य शेष रही २६ प्रकृतियों में से अन्तिम समय में हास्य, रति, जुगुप्सा और भय, नोकषायमोहनीय कर्म की इन चार प्रकृतियों का बन्धविच्छेद हो जाने से नौवें आदि आगे के गुणस्थानों में इनका बन्ध नहीं होता है। इस कारण पूर्वोक्त २६ प्रकृतियों में से प्रथम भाग में हास्यादि चार प्रकृतियाँ कम हो जाने से शेष २२ प्रकृतियाँ बन्धयोग्य मानी गई हैं। दूसरे भाग में २१ प्रकृतियों का बन्ध होता है। नौवें गुणस्थान के प्रथम भाग में बांधी गई २२ प्रकृतियों में से पुरुषवेद का विच्छेद प्रथम भाग के अन्तिम समय में हो जाने से द्वितीय भाग में २१ प्रकृतियों का बन्ध होता है। तृतीय भाग में पूर्वोक्त २१ प्रकृतियों में से संज्वलन-क्रोध का विच्छेद द्वितीय भाग के अन्तिम समय में हो जाने से शेष रही २० प्रकृतियों का बन्ध होता है। चतुर्थ भाग में पूर्वोक्त २० प्रकृतियों में से संज्वलन मान का विच्छेद तृतीय भाग के अन्तिम समय हो जाने से शेष रही १९ प्रकृतियों का बन्ध होता है। और पंचम भाग में पूर्वोक्त १९ प्रकृतियों में से चौथे भाग के अन्तिम समय में संज्वलन माया का विच्छेद हो जाने से शेष रही १८ प्रकृतियों का बन्ध होता है।
(१०) दसवें सूक्ष्मसम्पराय गुणस्थान में १७ कर्मप्रकृतियों का बन्ध होता है। नौवें गुणस्थान के पांचवें भाग के अन्तिम समय में संज्वलन-लोभ का बन्धविच्छेद
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