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२१० कर्म विज्ञान : भाग ५ : कर्मबन्ध की विशेष दशाएँ
उचित नम्रभाव न रखा जाता हो उसे मान कहते हैं। गर्व, मद, घमंड, अहंकार, दर्प, स्तब्धत्व, ये सब मान के ही पर्यायवाची शब्द हैं। ___माया-आत्मा के कुटिल, वक्र या छल-कपट, ठगी, वंचना, धूर्तता आदि भाव को माया कहते हैं। अथवा दूसरों को ठगने, धोखा देने या चकमा देने के लिये जो कुटिलता, छल-प्रपंच या प्रवंचना की जाती है, या अपने हृदय के भावों को छिपाने की जो चेष्टा की जाती है, वाह माया है। - लोभ-धन, अभीष्ट पदार्थ, या पद-प्रतिष्ठा आदि प्राप्त करने की, संचित करने की, वृद्धि करने की या ममत्व मूर्छापूर्वक रखने की आकांक्षा, इच्छा, गृद्धि, आसक्ति, लालसा, तृष्णा या वासना को लोभ कहते हैं। बाह्य पदार्थों के प्रति 'यह मेरा है' इस प्रकार की अनुरागबुद्धि को भी लोभ कहते हैं।
(७) ज्ञान-मार्गणा के भेद और उनका स्वरूप ज्ञानमार्गणा के ५ ज्ञान और तीन अज्ञान, यों कुल ८ भेद बताये गए हैं। यथा-(१) मतिज्ञान, (२) श्रुतज्ञान, (३) अवधिज्ञान, (४) मनःपर्यायज्ञान, (५) केवलज्ञान, (६) मति-अज्ञान, (७) श्रुत-अज्ञान और (८) विभंगज्ञान। ज्ञान के साथ तीन अज्ञानों को इसलिए ग्रहण किया गया है कि ये भी ज्ञान की एक विशेष पर्याय हैं तथा मिथ्यात्वयुक्त होने से इनसे पदार्थ का सम्यग्ज्ञान न होकर मिथ्या (विपरीत) ज्ञानरूप कार्य होता है, ये तीनों अज्ञान ज्ञानाभावरूप नहीं, कुज्ञानरूप हैं।
मतिज्ञान-इन्द्रियों और मन के द्वारा यथायोग्यस्थान में अवस्थित वस्तु के होने वाले ज्ञान को मतिज्ञान कहते हैं। यह ज्ञान प्रायः वर्तमानकालिक विषयों को जानता है। । श्रुतज्ञान-जो ज्ञान श्रुतानुसारी होता है, यानी जिसमें शब्द और उसके अर्थ का सम्बन्ध भासित होता है, और जो मतिज्ञानपूर्वक इन्द्रिय और मन के निमित्त से होता है, वह श्रुतज्ञान है। जैसे-जल शब्द सुनकर, यह जानना कि यह शब्द 'पानी' का बोधक है अथवा पानी देखकर यह विचारना कि यह जल शब्द का अर्थ है। इसी प्रकार उससे सम्बन्धित अन्यान्य बातों का विचार करना श्रुतज्ञान है।
अवधिज्ञान-इन्द्रियं और मन की सहायता की अपेक्षा रखे बिना जो ज्ञान साक्षात् आत्मा के द्वारा द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की मर्यादापूर्वक पदार्थ को ग्रहण १. (क) चतुर्थ कर्मग्रन्थ गा. ११ विवेचन (मरुधरकेसरी), पृ. ११६
ख) चतुर्थ कर्मविपाक गा.११ विवेचन से सारांश ग्रहण (पं. सुखलालजी) पृ. ५५ २. (क) मन्यते-इन्द्रिय-मनोद्वारेण नियतं वस्तु परिच्छिद्यतेऽनयेति मतिः
योग्यदेशावस्थित-वस्तु-विषय इन्द्रियमनोनिमित्तोऽवगम-विशेषः। (ख) श्रवणं श्रुतम्-शब्दार्थ-पर्यालोचनानुसारी इन्द्रिय-मनोनिमित्तोऽवगमविशेषः।
___-चतुर्थ कर्मग्रन्थ स्वोपज्ञ टी., पृ. १२९
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