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मार्गणास्थान द्वारा संसारी जीवों का सर्वेक्षण- २ २४७
मनोयोग में अपर्याप्त और पर्याप्त संज्ञी, १ ये दो जीवस्थान हैं, अन्य नहीं। क्योंकि अन्य जीवस्थानों में मनःपर्याप्ति द्रव्यमन आदि सामग्री न होने से मनोयोग नहीं होता । मनोयोग में गुणस्थान तेरह हैं, क्योंकि चौदहवें गुणस्थान में कोई भी योग नहीं होता । मनोयोग पर्याप्त अवस्थाभावी है। इस कारण उसमें अपर्याप्त अवस्थाभावी कार्मण और औदारिकमिश्र, इन दो को छोड़कर तेरह योग होते हैं। यद्यपि केवलिसमुद्घात के समय पर्याप्त अवस्था में भी उक्त दो योग होते हैं; तथापि उस समय प्रयोजन न होने के कारण केवलज्ञानी मनोद्रव्य को ग्रहण नहीं करते। इस कारण उस समय भी उक्त दो योग के साथ मनोयोग का साहचर्य घटित नहीं होता । मनोयोग - सम्पन्न प्राणियों में सब प्रकार के बोध की शक्ति पायी जाती है, इस कारण मनोयोग में बारह उपयोग माने गए हैं।.
वचनयोग में ८ जीवस्थान कहे गए हैं। वे ये हैं- द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और असंज्ञि-पंचेन्द्रिय, ये चार पर्याप्त तथा अपर्याप्त। यहाँ वचनयोग मनोयोग-रहित लिया गया है। इसलिए इन ८ जीवस्थानों में ही गिना गया है।
वचनयोग में पहला और दूसरा, दो गुणस्थान, औदारिक, औदारिकमिश्र, कार्मण और, असत्यामृषा वचन, ये चार योग, मति- अज्ञान, श्रुत- अज्ञान, चक्षुर्दर्शन और अचक्षुर्दर्शन, ये चार उपयोग हैं। कार्मण और औदारिकमिश्र ये दोनों अपर्याप्तअवस्थाभावी होने के कारण पर्याप्त अवस्थाभावी वचनयोग के असमकालीन हैं, तथापि उक्त दो योग वालों को भविष्य में वचनयोग होते हैं, इसलिए मान लिये गये ।
काययोग में सूक्ष्म और बादर ये दो पर्याप्त तथा अपर्याप्त कुल ४ जीवस्थान, पहला और दूसरा दो गुणस्थान, औदारिक औदारिकमिश्र, वैक्रिय, वैक्रियमिश्र और कार्मण ये ५ योग तथा मति- अज्ञान, श्रुत- अज्ञान और अचक्षुर्दर्शन ये तीन उपयोग
१. १७ वीं गाथा में मनोयोग में सिर्फ पर्याप्त संज्ञी जीवस्थान माना है, सो वर्तमान मनोयोग वालों को मनोयोगी मानकर इस गाथा में मनोयोग में पर्याप्त अपर्याप्त संज्ञीपंचेन्द्रिय दो जीवस्थान माने हैं, सो वर्तमान- भावी-उभय मनोयोगियों को मनोयोगी मान कर कथन है।
२. कर्मग्रन्थ भा. ४ गा. २२, २८, ३१ में क्रमश: वचनयोग में १३ गुणस्थान, १३ योग और १२ उपयोग माने हैं, यहां २ गुणस्थान, ४ योग और ४ उपयोग माने गए, इस भिन्नता का कारण भी यहां वर्तमान की तरह भावी वचनयोग वाले भी वचनयोगस्वामी माने गए हैं, तथा मनोयोगरहित वचनयोग विशिष्ट माना गया है।
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