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२६६ कर्म विज्ञान : भाग ५ : कर्मबन्ध की विशेष दशाएँ उत्पन्न नहीं होते हैं। जैसे कि देवगति, देवानुपूर्वी, वैक्रिय शरीर, वैक्रिय अंगोपांग, देवायु, नरक गति, नरकानुपूर्वी और नरकायु, ये ८ प्रकृतियाँ देव और नारक-प्रायोग्य हैं, किन्तु नारकी जीव मरकर नरक गति और देव गति में उत्पन्न नहीं होते। इसलिए इन आठ कर्म प्रकृतियों का बन्ध भी नरक गति में नहीं होता। इसी प्रकार सूक्ष्म नाम, अपर्याप्त नाम और साधारण नाम, इन तीन प्रकृतियों का भी बन्ध नारक जीवों के नहीं होता, क्योंकि सूक्ष्म नाम कर्म का उदय सूक्ष्म एकेन्द्रिय के, अपर्याप्त नामकर्म का उदय अपर्याप्त तिर्यंचों के, तथा साधारण नामकर्म का उदय साधारण वनस्पतिकायिक जीवों के होता है, जबकि नारक पंचेन्द्रिय पर्याप्त होते हैं। इसी. प्रकार एकेन्द्रिय जाति, स्थावर नाम और आतप नाम, ये तीन प्रकृतियाँ एकेन्द्रियप्रायोग्य हैं, तथा विकलेन्द्रियत्रिक विकलेन्द्रिय-प्रायोग्य हैं। अतः इन ६ प्रकृतियों को भी नारक जीव नहीं बांधते। एवं आहारकद्विक का उदय चारित्रसम्पन्न लब्धिधारक मुनियों को ही होता है, अन्य को नहीं। इसलिए देवद्विक से लेकर आतप नामकर्म तक १९ प्रकृतियाँ नरकगति में अबन्ध होने से शेष रहीं सामान्यतया १०१ प्रकृतियों का बन्ध होता है।
प्रथम मिथ्यात्वगुणस्थानवर्ती नारक में १०० प्रकृतियों का बन्ध यद्यपि नरक गति में सामान्यतया १०१ कर्मप्रकृतियाँ बन्ध योग्य हैं, किन्तु नारकों में पहले मिथ्यात्व-गुणस्थान से लेकर चौथे अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान तक चार गुणस्थान होते हैं। अतः प्रथम मिथ्यात्व गुणस्थान में तीर्थंकर नामकर्म का बन्ध न होने से १०० प्रकृतियों का बन्ध होता है। तीर्थंकर नामकर्म के बन्ध का अधिकारी सम्यक्त्वी है। मिथ्यात्वगुणस्थान में सम्यक्त्व न होने से तीर्थंकर नामकर्म का बन्ध नहीं होता। इसलिए मिथ्यात्वंगुणस्थान में नारक जीवों के १०० प्रकृतियाँ बन्धयोग्य मानी जाती हैं।
सास्वादन गुणस्थानवर्ती नारक छियानवे प्रकृतियाँ बाँधते हैं दूसरे सास्वादन गुणस्थानवर्ती नारक जीव नपुंसकवेद, मिथ्यात्व-मोहनीय, हुंडक संस्थान और सेवा संहनन-इन चार प्रकृतियों को नहीं बांधते हैं, क्योंकि इन चार प्रकृतियों का बन्ध मिथ्यात्व के उदयकाल में होता है। लेकिन सास्वादन गुणस्थान के समय मिथ्यात्व का उदय नहीं रहता है। और नरकत्रिक, जाति-चतुष्क, स्थावरचतुष्क, हुंडक संस्थान, आतपनाम, सेवार्त-संहनन, नपुंसकवेद और मिथ्यात्वमोहनीय-इन सोलह प्रकृतियों का बन्ध मिथ्यात्व-निमित्तक है। इनमें दो नरकत्रिक, सूक्ष्मत्रिक, विकलत्रिक, एकेन्द्रिय जाति, स्थावर नाम और आतप नाम-इन बारह
१. तृतीय कर्मग्रन्थ, मा. ४ विवेचन (मरुधरकेसरीजी) से।
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