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३२० कर्म विज्ञान : भाग ५ : कर्मबन्ध की विशेष दशाएँ
जो अध्यवसाय कम शुद्धि वाले होते हैं, वे जघन्य और जो अध्यवसाय अन्य सब अध्यवसायों की अपेक्षा अधिक शुद्धि वाले होते हैं, वे उत्कृष्ट कहलाते हैं।
इस प्रकार एक वर्ग जघन्य अध्यवसायों का और दूसरा वर्ग उत्कृष्ट अध्यवसायों का होता है। इन दोनों वर्गों के बीच में असंख्यात वर्ग हैं, जिनके सब अध्यवसाय मध्यम कहलाते हैं। प्रत्येक वर्ग के जघन्य अध्यवसायों की शुद्धि की अपेक्षा अन्तिम वर्ग के जघन्य अध्यवसायों की शुद्धि अनन्तगुणी अधिक होती है, तथैव बीच के सब वर्गों में पूर्व-पूर्व वर्गों के अध्यवसायों की अपेक्षा उत्तर - उत्तर वर्ग के अध्यवसाय विशेष शुद्ध माने जाते हैं। सामान्यतया सम-समयवर्ती अध्यवसायों की एक दूसरे से भिन्नता निम्नोक्त ६ भागों में विभक्त की गई है - ( १ ) अनन्तभाग अधिक शुद्ध, (२) असंख्यात भाग अधिक शुद्ध, (३) संख्यात भाग अधिक शुद्ध, (४) संख्यात गुण अधिक शुद्ध, (५) असंख्यात गुण अधिक शुद्ध और (६) अनन्त गुण अधिक शुद्ध ।
इस प्रकार अधिक शुद्धि के पूर्वोक्त अनन्त भाग अधिक शुद्धि आदि छह प्रकारों को 'षट्स्थान' कहते हैं। यों अन्तिम समय तक पूर्व - पूर्व समय के अध्यवसायों से पर - पर समय के अध्यवसाय भिन्न-भिन्न तथा प्रत्येक समय के जघन्य अध्यवसाय से उस समय के उत्कृष्ट अध्यवसाय अनन्तगुण विशुद्ध समझने चाहिए । तथैव पूर्व-पूर्व समय के उत्कृष्ट अध्यवसायों की अपेक्षा पर पर समय के जघन्य अध्यवसाय भी अनन्तगुण विशुद्ध समझने चाहिए । १
निवृत्तिबादर का दूसरा नाम अपूर्वकरण भी है। करण का अर्थ है- अध्यवसाय, भाव, परिणाम, आत्म-परिणाम या क्रिया । इस गुणस्थान में अपूर्व विशुद्धि या पूर्व गुणस्थानों में जो विशुद्ध परिणाम, पहले नहीं उपलब्ध या उत्पन्न हुए, उनका उत्पन्न होना, अर्थात् - पूर्व गुणस्थानों में जो परिणाम अभी तक प्राप्त नहीं हुए, उनका प्राप्त होना अपूर्वकरण है। अथवा चारित्रमोहनीय कर्म का उपशम या क्षय से अपूर्व (इससे
(पृष्ठ ३१९ का शेष)
(ख) निवृत्ति:- यद् - गुणस्थानकं समकालप्रतिपन्नानां जीवानामध्यवसायभेदः, तत्प्रघानो बादरो- बादर सम्परायो निवृत्ति - बादरम् । - समवायांग वृत्ति, पत्र २६
(ग) भिन्न - समयट्ठिएहिं हु जीवेहिं ण होदि सव्वदा सरिसो ।
करणेहिं एक्क- समयट्ठिएहिं सरिसो विसरिसो वा ॥
- गोम्मटसार गा. ५२
१. (क) कर्मग्रन्थ भा. २ विवेचन (पं. सुखलाल जी तथा मरुधरकेसरी जी म. ), पृ.
१६-१७ एवं ३१-३२
(ख) उत्कृष्ट की अपेक्षा हीन षट्स्थान के नाम ये हैं- ( १ ) अनन्तभाग- हीन, (२) असंख्यातभाग-हीन, (३) संख्यात भाग- हीन, (४) संख्यात - गुण - हीन । (५) असंख्यात -गुण-हीन और (६) अनन्तगुण-हीन ।
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