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२७६ कर्म विज्ञान : भाग ५ : कर्मबन्ध की विशेष दशाएँ (वर्ग) हैं। देवगति में भी नरकगति के समान पहले से लेकर चौथे तक चार, गुणस्थान ही होते हैं। ___ यद्यपि देवों के भी प्रकृतिबन्ध नारकों के समान हैं, क्योंकि जैसे नारक मर कर नरकगति और देवगति में उत्पन्न नहीं होते, वैसे ही देव भी मर कर इन दोनों गतियों में उत्पन्न नहीं होते। इसलिए नारकों के समान देव भी देवत्रिक, नरकत्रिक और वैक्रियद्विक इन ८ प्रकृतियों का बन्ध नहीं करते और अविरतसंयमी न होने से आहारकद्विक का भी बन्ध नहीं करते तथा देव मर कर सूक्ष्म एकेन्द्रिय तथा विकलेन्द्रियत्रिक, इन ६ प्रकृतियों का भी बन्ध नहीं करते, इन प्रकार कुछ १०+६=१६ प्रकृतियाँ, बन्धयोग्य १२० प्रकृतियों में से कम करने पर सामान्यतया १०४ प्रकृतियों का बन्ध होता है; जबकि नरकगति में १२० बन्धयोग्य प्रकृतियों में से सुरद्विक से लेकर आतप नामकर्म तक १९ प्रकृतियों का बन्ध न होने से १०१ प्रकृतियों का बन्ध कहा गया है। किन्तु देवों के प्रकृतिबन्ध में कुछ विशेषता है-नारकों में एकेन्द्रिय, स्थावर आतप, इन तीन प्रकृतियों को बन्धयोग्य नहीं गिना गया है, जबकि देव मेर कर बादर एकेन्द्रिय में उत्पन्न हो सकते हैं, इस अपेक्षा से देव एकेन्द्रिय, स्थावर और आतप, इन तीन प्रकृतियों को अधिक बांधते हैं। इसी कारण देवों के १०१ के बजाय १०४ प्रकृतियाँ सामान्य से बन्धयोग्य मानी गईं हैं।
देवगति में सामान्य से तथा कल्पद्विक में बन्धप्ररूपणा सामान्य से देवगति में जो १०४ प्रकृतियों का बन्ध बताया गया है, उसी प्रकार कल्पोपपन्न (कल्पवासी) प्रथम सौधर्म और द्वितीय ईशान इन दो कल्पों (देवों) तक में भी समझना चाहिए। .. किन्तु देवगति और पूर्वोक्त कल्पवासी देवद्विक के देवों के मिथ्यात्वगुणस्थान में तीर्थंकर नामकर्म का बन्ध न होने से १०३ प्रकृतियों का बन्ध होता है। तथा बाकी के दूसरे, तीसरे और चौथे गुणस्थान में नरकगति के समान ही क्रमशः ९६, ७० और ७२ प्रकृतियों का बन्ध होता है।
भवनपति, ज्योतिष्क और व्यन्तर देवों में बन्ध-प्ररूपणा ज्योतिष्क, भवनवासी और व्यन्तर निकाय के देवों के भी तीर्थंकर नामकर्म का बन्ध न होने से सामान्य से और पहले मिथ्यात्वगुणस्थान की अपेक्षा से १०३ प्रकृतियों का बन्ध समझना चाहिए, क्योंकि इन तीन निकायों के देव वहाँ से निकल कर तीर्थंकर नहीं होते और न ही तीर्थंकर नामकर्म की सत्ता वाले जीव भवनपति, व्यन्तर और ज्योतिष्क में उत्पन्न होते हैं तथा इन तीन निकायों के देव अवधिज्ञान सहित परभव में नहीं जाते, जबकि तीर्थंकर अवधिज्ञानसहित ही परभव में जाकर
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