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२५२ कर्म विज्ञान : भाग ५ : कर्मबन्ध की विशेष, दशाएँ
लेश्यामार्गणाओं का अल्प - बहुत्व - शुक्ल लेश्या वाले अन्य सब लेश्याओं वालों से अल्प हैं। पद्म लेश्या वाले शुक्ल लेश्या वालों से संख्यातगुणे हैं। तेजोलेश्या वाले पद्म लेश्या वालों से संख्यातगुणे हैं । कापोत लेश्या वाले तेजोलेश्या वालों से अनन्तगुणे हैं । कापोत लेश्या वालों से नील लेश्या वाले विशेषाधिक हैं। कृष्ण लेश्या वाले नील लेश्या वालों से भी विशेषाधिक हैं।
भव्यत्व - अभव्यत्व मार्गणाओं का अल्प - बहुत्व - अभव्यजीव भव्यजीवों से अल्प हैं। भव्यजीव अभव्यजीवों की अपेक्षा अनन्तगुणे हैं।
सम्यक्त्व - मार्गणाओं का अल्प - बहुत्व - सासादन सम्यग्दृष्टि अन्य सब दृष्टि वालों से कम हैं । औपशमिक सम्यग्दृष्टि वाले सासादन सम्यग्दृष्टि वालों से संख्यात गुणे हैं। मिश्रदृष्टि वाले औपशमिक सम्यग्दृष्टि वालों से संख्यातगुणे हैं। वेदक ( क्षायोपशमिक) सम्यक्त्व वाले जीव, मिश्रदृष्टि वालों से असंख्यातगुणे हैं। क्षायिक सम्यग्दृष्टि वाले जीव वेदक सम्यग्दृष्टि वालों से अनन्तगुणे हैं। मिथ्यादृष्टि वाले जीव, क्षायिक सम्यग्दृष्टि वाले जीवों से अनन्तगुणे हैं।
संज्ञित्व - अंसज्ञित्व मार्गणाओं का अल्प - बहुत्व - देव, नारक, गर्भज तिर्यञ्च तथा गर्भज मनुष्य ही संज्ञी हैं, शेष सब संसारी जीव असंज्ञी हैं, जिनमें अनन्त वनस्पतिकायिक जीवों का समावेश है। अतः संज्ञी जीव असंज्ञी जीवों की अपेक्षा कम हैं और असंज्ञी जीव उनसे अनन्तगुणे हैं।
आहारक - अनाहारक मार्गणा का अल्प - बहुत्व - अनाहारक जीव आहारक जीवों की अपेक्षा कम हैं, उनसे आहारक जीव असंख्यातगुणे हैं।
(पृष्ठ २५१ का शेष)
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(ख) मण - वयण - काय - जोगा, थोवा असंखगुण- अनंतगुणा । पुरिसा थोवा इत्थी, संखगुणाणंतगुण कीवा ॥ ३९ ॥ (ग) माणी कोही माई लोही अहिय, मणनाणिणो थोवा ।
ओही असंखा मइ-सुय अहिय-सम- असंख विभंगा ॥ ४० ॥ hasaगुणा मइ - सुय - अन्नाणि णंत गुण -तुल्ला । सुहुमा थोवा परिहार संख अहक्खाय - संख गुणा ॥ ४१ ॥ छेय-समय संखा, देस असंखगुण णंतगुण अजया ।
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थोव असंख दुणंता ओहि नयण - केवल - अचक्खू ॥ ४२ ॥ - चतुर्थ कर्मग्रन्थ (घ) चतुर्थ कर्मग्रन्थ गा. ३८ से ४२ तक विवेचन, (पं० सुखलालजी) सारांश, पृ०
१२२ से १२८
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