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चौदह जीवस्थानों में संसारी जीवों का वर्गीकरण १५७ ___सभी जीवों में भावप्राण : संसारी जीवों में भाव प्राणयुक्त द्रव्यप्राण .. जीव अनन्त हैं और जीवत्व की अपेक्षा अनन्त संसारी और अनन्त सिद्ध जीवों का स्वरूप एक है। जीवों के मुख्य दो प्रकार हैं-संसारी और सिद्ध (मुक्त)। इन दोनों प्रकार के अनन्त जीवों में चैतन्यरूप तथा ज्ञानादिरूप चतुष्टयरूप भावप्राण तो रहते ही हैं, साथ ही संसारी जीवों में भावप्राणों के साथ-साथ यथायोग्य इन्द्रियादि द्रव्यप्राण भी होते हैं; जबकि मुक्त (अशरीरी सिद्ध) जीवों में सिर्फ ज्ञानादि भावप्राण ही होते हैं। जब तक इन्द्रियादि कर्मजन्य द्रव्यप्राण हैं, तब तक वे यथायोग्य इन्द्रिय आदि से युक्त रहते हैं। मगर कर्ममुक्त हो जाने पर सिर्फ ज्ञानादि चैतन्य परिणाम युक्त भावप्राण रहते हैं।
जीव की व्याख्या-निश्चय-नय-सापेक्ष जीव की यह व्याख्या व्यवहार और निश्चय, दोनों नयों की अपेक्षा से की गई है। अर्थात् संसारी जीव की इन्द्रियादि द्रव्यप्राणों तथा ज्ञानादि भावप्राणों से युक्त त्रिकाल जीवित रहने की व्याख्या व्यवहारनय-सापेक्ष है; जबकि मुक्त (विदेहमुक्त) जीवों की सिर्फ ज्ञानादि भावप्राणों से सहित जीवित रहने की व्याख्या निश्चय-नयसापेक्ष है। मुंक्त और संसारी दोनों ही जीव हैं, किन्तु जीवस्थान के सन्दर्भ में प्ररूपणा संसारी जीवों की की गई है।
संसारी जीव : शुद्ध और अशुद्ध कैसे? . द्रव्य संग्रह के अनुसार-अशुद्ध नय की दृष्टि से समस्त संसारी जीव चौदह मार्गणा और चौदह गुणस्थानों से चौदह-चौदह प्रकार के होते हैं। जबकि शुद्ध नय की दृष्टि से सभी संसारी जीव शुद्ध हैं।२
१. (क) शुद्ध निश्चयनयेनादि-मध्यान्त-वर्जित-स्वपर-प्रकाशकाविनश्वर-निरुपाधि
शुद्ध-चैतन्य-लक्षण-निश्चय-प्राणेन यद्यपि जीवति, तथाऽप्यशद्ध नयेनानादिकर्मबन्ध वशादशुद्ध-द्रव्य-भाव-प्राणैर्जीवतीति जीवः।
-द्रव्य संग्रह टीका २/७ (ख) तिक्काले चदुपाणा इंदियबलमाउ-आणपाणो य।। ... ववहारा सो जीवो, णिच्छयणयदो दु चेदणा जस्स॥ -द्रव्यसंग्रह ३
(ग) कर्मग्रन्थ भा. ४ विवेचन, (मरुधरकेसरीजी), पृ. १० २. मग्गण-गुणठाणेहिं च चउद्दसहिं हवंति तह असुद्धणया। विण्णया संसारी सव्वे सुद्धा.हु सुद्धणया॥
- -द्रव्यसंग्रह १३
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