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मार्गणास्थान द्वारा संसारी जीवों का सर्वेक्षण-१ २०३ कियां जाए; अथवा सम्यक्त्व तथा देश-सकल-यथाख्यात चारित्र-त्रय का घात करे, वह कषाय है। .
(७) ज्ञान-सामान्य-विशेषात्मक वस्तु में से उसके विशेष अंश को जानने वाले आत्म-व्यापार को ज्ञान कहते हैं। अथवा जिसके द्वारा त्रिकालविषयक (भूतवर्तमान-भविष्यकाल सम्बन्धी) समस्त द्रव्य और उनके गुणों और पर्यायों को जाना जा सके, वह ज्ञान है।
(८) संयम-सावद्य योगों से निवृत्ति अथवा जिसके द्वारा पाप व्यापार रूप आरम्भ-समारम्भों से आत्मा नियंत्रित किया जाए उसे संयम कहते हैं अथवा अहिंसादि व्रतों के धारण; ईर्यादि समितियों के पालन, कषायों के निग्रह तथा मन आदि दण्ड के त्याग और इन्द्रिय-जय को 'संयम' कहा गया है।
(९) दर्शन-सामान्य-विशेषात्मक वस्तु-स्वरूप में से वस्तु के सामान्य अंश को जानने-देखने वाले चेतनाशक्ति के उपयोग या व्यापार को दर्शन कहते हैं। पदार्थों के आकार को विशेषरूप से न जानकर सामान्यरूप से जानना दर्शन है।
१. (क) सह-दुक्खस बहसस्सं कम्मखेत्तं कसेदि जीवस्स। ... संसारदूरमेरं तेण कसाओत्ति णं वेत्ति॥ -गो. जीव. गा. २८२,२८१ ... (ख) सम्मत्त-देस-सयल-चरित्त-जहक्खाद-चरण-परिणामे।
घादंति वा कसाया ॥ गो. जी. २८३ (क) सामान्य-विशेषात्मके वस्तुनि विशेषग्रहणात्मको बोध इत्यर्थः।
-कर्मग्रन्थ भा. ४ स्वो. टीका पृ. १२७ (ख) जाणइ-तिकाल-विसए दव्व-गुणे पज्जए य बहुभेदे। -गोम्मट-जीव. २९८ ३. (क) संयमनं सम्यगुपरमणं सावधयोगादिति संयमः। यद्वा संयम्यते नियम्यत आत्मा . .. पाप-व्यापार-सम्भारादनेनेति संयमः।'
-चतुर्थ कर्मग्रन्थ स्वोपज्ञ टीका, पृ. १२७ (ख) गोम्मटसार जीवकाण्ड गा. ४६४
(ग) चतुर्थ कर्मग्रन्थ गा. ९ विवेचन (मरुधरकेसरी), पृ. १०१,१०२ ४. (क) दृश्यते विलोक्यते वस्त्वनेनेति दर्शनम्, यदि वा दृष्टिर्दशनम्। सामान्य... विशेषात्मके वस्तुनि सामान्यात्मको बोध इत्यर्थः।
-चतुर्थ कर्मग्रन्थ स्वोपज्ञ टीका पृ. १२७ - (ख) सामान्य-प्रधानमुपसर्जनीकृत विशेषमर्थग्रहणं दर्शनमुच्यते।।
-स्याद्वादमंजरी १/१०/२२ . (ग) गो. जीवकाण्ड गा. ४८१
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