________________
विपाक पर आधारित चार कर्मप्रकृतियाँ ६७ पारिवारिक क्षेत्र के निमित्त से कषाय की तीव्रतावश कर्मबीज बोया, उसे परिवार में ही तदनुसार कर्म-विपाक (कर्मफलानुभव) होगा। या तदनुरूप तीव्रमन्द-रसानुभव होगा। किसी ने व्यावसायिक क्षेत्र में तदनुरूप कर्मबीज बोये होंगे तो उसे तदनुसार कर्मबन्ध होकर समय परिपक्व होने पर उस बद्धकर्म का फलानुभव होगा, उसे विपाक कहा जाता है। धवला' के अनुसार-पूर्वबद्ध कर्म जब रसोदय के अनुरूप फलभोग कराने के अभिमुख होते हैं, तब उस कर्म के उदय या उदीरणा के अनुसार अनुभव (फलभोग) को विपाक कहते हैं।
इसी प्रकार कभी किसी क्षेत्र, कभी किसी पुद्गल, कभी भव और कभी किसी जीव के भाव के निमित्त से बद्ध कर्म अपना विपाक यानी फलानुभव कराते हैं। वे विपाक राग-द्वेष-मोहात्मक परिणामों की तीव्रता-मन्दता के अनुसार तथा विभिन्न कर्मों के अनुसार विविध प्रकार के होते हैं। निष्कर्ष यह है कि जीव के साथ अमुक-अमुक पदार्थ से सम्बद्ध होने पर बंधे हुए कर्म समय आने पर रसोदयाभिमुख होते हैं और विपाक यानी फलानुभव कराते हैं।२
अष्टविध कर्म के विभिन्न विपाकों का दिग्दर्शन मूल में कर्मों के आठ प्रकार हैं। इन अष्टविध कर्मों के विभिन्न विपाकोंअनुभावों का निरूपण 'प्रज्ञापनासूत्र' में बहुत ही विस्तार से किया गया है। हम आठों ही कर्मों के विपाकों (फलभोगों-अनुभावों) का संक्षिप्त निरूपण कर्मविज्ञान के पंचम खण्ड में कर्म-महावृक्ष के सामान्य और विशेष फल' नामक निबन्ध में कर आए हैं। यहाँ संक्षेप में आठ कर्मों के विपाक (अनुभाव) का निरूपण करेंगे।
(१) ज्ञानावरणीय कर्म का उदय होने पर जीव की पांचों इन्द्रियों तथा मन से होने वाले लब्धिजन्य और उपयोगजन्य ज्ञान की शक्ति को रोकना ज्ञानावरणीयकर्म का विपाक है। अर्थात्-ज्ञानावरणीय कर्म का फल-विपाक जीव के ज्ञान गुण को रोकना है। ज्ञान के आवृत हो जाने पर जीव की बुद्धि, स्मृति, पढ़ने-लिखने की १. "कम्माणमुदओ उदीरणा वा विवागो णाम।"-धवला १४/५, ६, १४/१० २. (क) कर्मग्रन्थ भा. ५ (पं. कैलाशचन्द्रजी), पृ. ५२, ५३
(ख) 'विपाकोऽनुभावः।'-तत्वार्थसूत्र अ. ९ ३. (क) देखें-प्रज्ञापनासूत्र खण्ड ३, पद २३, पंचम अनुभावद्वार में विपाक के सम्बन्ध
में विस्तृत विवेचन। __(ख) ज्ञानावरणीय आदि आठों कर्मों के अनुभाव (विपाक) के स्पष्ट निरूपण के
लिए देखें-कर्मविज्ञान खण्ड ५, भाग २, में 'कर्ममहावृक्ष के सामान्य और विशेष फल' नामक निबन्ध।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org