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अहिंसा ]
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जाती है; इसलिये जो मनुष्य हिंसाको बचाने में प्रयत्नशील है,
वह हिंसक कैसे हो सकता है ? केवल जैनशास्त्रों में ही इस सूक्ष्म हिंसाका विचार नहीं किया गया है, किन्तु महाभारत में भी यह प्रश्न उठा है ! वहाँ अर्जुन कहते हैं:
इस जगत् तें ऐसे ऐसे सूक्ष्म जीव हैं जो कि आँखोंसे तो हा दिखाई देते किन्तु तर्क से सिद्ध हैं - वे जवि पलक हिलानेसे भी मर जाते हैं। इस प्रश्न के समाधान में वहाँ भी ' द्रव्यहिंसा से ही हिंसा नहीं होती' इत्यादि कथन किया गया है । इस वक्तव्यका सार यही है कि प्राणिवध देखकर ही किसी को हिंसक न कहना चाहिये | परन्तु इसके साथ ही प्रश्न यह होता है कि 'तत्र हिंसक किसे कहना चाहिये ? वास्तव में हिंसा क्या है, जिसका मनुष्य त्याग करे ? '
इस प्रश्न के उत्तर के लिये भी हमें इसी बात पर विचार करना चाहिये कि वास्तव में हमें धर्मकी - चारित्रकी - अहिंसाकीजरूरत क्यों हुई ? यह पहिले कहा जा चुका है कि कल्याण के लिये - सुख के लिये - इनकी जरूरत है । बस यही इसका उत्तर
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हैं कि प्रथम अध्याय में बताये हुए कल्याणमार्ग के अनुसार कल्याण
सूक्ष्मा न प्रतिपीड्यन्ते प्राणिनः स्थूलमृर्त्तयः । ये शक्यास्ते विवर्ण्यन्तेका हिंसा संयतात्मनः । सूक्ष्मयोनीनि भूतानि तर्कगम्यानिकानिचित् । पक्ष्यणोऽपिनिपातेन येषाम् स्यात्स्कन्धपर्ययः ! महाभारत शान्तिपर्व १५-२६ ।