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अहिंसा ]
[ १९ हिंसक नहीं कहलाता 1
____ अमृतचन्द्रसरिने पुरुषार्थसिद्धयुपाय में इसका और भी सुन्दर विवेचन किया है। वे कहते हैं----
एक मनुष्य हिंसा [प्राणिवध] न करके भी हिंसक हो जाता है अर्थात् हिंसा का फल प्राप्त करता है । दूसरा मनुष्य हिंसा [प्राणिवध । करके भी हिंसक नहीं होता । एक की थोड़ी सी हिंसा भी बहुत फल देती है और एक की बड़ी भारी हिंसा भी थोड़ा फल देती है। किसी की हिंसा, हिंसा का फल देती है और किसी की वही हिंसा अहिंसा का फल देती है। किसी की अहिंसा हिंसा का फल देती है
और किसी की हिंसा अहिंसा का फल देती है । हिंस्य (जिसकी हिंसा की जाय) क्या है ? हिंसक कौन है ? हिंसा क्या है ? और हिंसा का फल क्या है ! इन बातों पर अच्छी तरह विचार करके हिंसा का त्याग करना चाहिये । A
* मरदुव जियदुव जावो अयदाचारस्स णिच्छिदाहिंसा ! पयदस्स णन्थिबंधो हिंसामेत्तेण समिदस्स । A अविधायापि हि हिंसा हिंसाफल माजनं भवत्येकः । कृत्वापरो हिंसा हिंसाफलभाजनं न स्यात् ।। एकस्याल्पा हिंसा ददाति काले फलमनल्पम् । अस्वस्य महाहिंसा स्वल्पफला भवति परिपाके । कस्यापि दिशति हिंसा हिंसाफलमेकमेव फल काले । अस्वस्य सैव हिंसा दिशत्यहिंसा फलं विपुलम् ।। हिंसा फलमपरस्य तु ददास्यहिंसा तु परिणामे । इतरस्य पुनहिंसा दिशत्यहिंसा नान्यत् ॥ अवबुध्य हिंस्यहिंसक हिंसा हिंसाफलानि तत्त्वेन । नित्यमवगृहमानः निजशक्त्या त्यज्यतां हिंसा ।।