Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
भगवतिसूत्रे षष्टीनां सामानिकसाहस्रीणाम्, शेषं यथा चमरस्य तथा बलेरपि नेतव्यम्, नवरम् वातिरेक केवलकल्पं जम्बूद्वीपम् [इति] भणितव्यम्, शेषं तच्चैव निरवशेषं नेतव्यम्, नवरम्-नानात्वं ज्ञातव्यं भवनैः, सामानिकैश्च, तदेव भगवन् ! तदेव भगवन् ! इति तृतीयो गौतमो वायुभूतिवित्-विहरति ॥ मू०७ ॥ के लिये शक्तिशाली है ? (गोयमा) हे गौतम ! (बली णं वहरोयणिंदे वइरोयणराया महिडीए जाव महाणुभागे) वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज जो बलि है वह बहुत बडी ऋद्धिवाला है यावत् वह महा प्रभाववाला है। (से णं तत्थ तीसाए भवणावाससयसहस्साणं, सट्ठीए सामाणिय साहस्सोणं-सेसं जहा चमरस्स तहा बलिस्स वि णेयव्यं) वह वहां पर तीस लाख भवनावासोका और साठ हजार सामानिक देवों का स्वामी है। बाकी का इस बली का इस विषय का और कथन चभर की तरह से ही जानना चाहिये। (नवरम्-सातिरेगं केवलकप्पं जंबूदिवं भाणियब-सेसं तं चेव निरवसेसं णेयव्वं ) यहां विशेषता केवल इतनी है कि यह वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि अपनी विकुवर्णा से पूरे जंबुद्धीप से भी अधिक प्रदेश को भर सकने में समर्थ है। (नवरं नाणत्तं जाणियब्वं भवणेहिं सामाणिएहिं य-सेवं भंते! सेवं भंते ! त्ति तच्चे गोयमे वाउभूई जाब विहरइ) विशेषता यह हैं कि भवन और सामाकिों में भिन्नता हैं । हे भदन्त ! जैसा आप देवानुप्रियने कहा है वह ऐसा ही (गोयमा) 3 गौतम ? बलीणं वइरोयणिंदे वइरोयणराया महडीए जाव महाणु भागे) वैशयनेन्द्र वैश्यन२००८ मति मार्ड २४ मारे समृद्धि धृति मण सुभ यश भने प्रभावामा छ. (से गं तत्थ तीसाए भबणावाससयसहस्साणं सट्टीए सामाणीयसाहस्सीणं) ते त्यांनीस are भवनावासोना तथा, स18 M२ सामानि वाना स्वामी छ. (सेसं जहा चमरस्स तहा बलिस्स वि णेयव्यं) डीन मधु वर्णन यमरना वर्णन प्रमाणे ४ सभा (नवरं- सातिरेगं केवल कप्पं जबूदीवं भाणियव्वं- सेसं तं चेव निरवसे संणेयव्वं) विशेषता मेरी छे वैशयनेन्द्र બલિ તેની વિમુર્વણુ શકિતથી ઉત્પન્ન કરેલા રૂપે વડે સમસ્ત જંબુદ્વીપ કરતાં પણ અધિક પ્રદેશને ભરી શકવાને સમર્થ છે બાકીનું સમસ્ત કથન ચમરેન્દ્ર મુજબ સમજવું (नवरं नाणत्तं जाणियव्यं भवणेहिं सामाणिएहिं य- सेवं भंते सेवं भंते तिं तच्चे गोयमे वाउभूई जाव विहरइ) विशेषता के छ भने मन सामानिमा ભિન્નતા છે. આપનું કથન સત્ય છે, આપની વાત યથાર્થ છે, “એમ કહીને ત્રીજા
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩