Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
५६
व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र ___ [८-२ प्र.] भगवन् ! क्या उसे (मेघ-संस्वेदन-सम्मूर्च्छन-वर्षण) देव करता है, असुर करता है या नाग करता है ?
[८-२ उ.] हाँ, गौतम ! (ऐसा) देव भी करता है, असुर भी करता है और नाग भी करता है। ९.[१] अस्थि णं भंते ! तमुक्काए बादरे थणियसद्दे, बायरे विजुए ? हंता, अत्थि। [९-१ प्र.] भगवन् ! तमस्काय में क्या बादर स्तनित शब्द (स्थूल मेघगर्जन) है, क्या बादर विद्युत है? [९-१ उ.] हाँ, गौतम ! है। [२] तं भंते ! किं देवो पकरेति ३? तिण्णि वि पकरेंति। [९-२ प्र.] भगवन् ! क्या उसे देव करता है, असुर करता है या नाग करता है ? [९-२ उ.] गौतम ! तीनों ही करते हैं (अर्थात्-देव भी करता है, असुर भी करता है और नाग भी करता
१०. अत्थि णं भंते ! तमुक्काए बादरे पुढविकाए, बादरे अगणिकाए? णो तिणढे समढे, णन्नत्थ विग्गहगतिसमावन्नएणं। [१० प्र.] भगवन् ! क्या तमस्काय में बादर पृथ्वीकाय है और बादर अग्निकाय है ?
[१० उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। वह निषेध विग्रहगतिसमापन के सिवाय समझना। (अर्थात्-विग्रहगतिसमापन्न बादर पृथ्वी और बादर अग्नि हो सकती है।)
११. अस्थि णं भंते ! तमुक्काए चंदिम-सूरिय-गहगण-णक्खत्त-तारारूवा? णो तिणढे समढे, पलिपस्सतो पुण अत्थि। [११ प्र.] भगवन् ! क्या तमस्काय में चन्द्रमा, सूर्य, ग्रहगण, नक्षत्र और तारारूप हैं ? [११ उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, किन्तु वे (चन्द्रादि) तमस्काय के परिपार्श्व में (आसपास)
tho
१२. अस्थि णं भंते ! तमुक्काए चंदाभा ति वा, सूराभा ति वा? णो तिणढे समढे, कादूसणिया पुण सा। [१२ प्र.] भगवन् ! क्या तमस्काय में चन्द्रमा की आभा (प्रभा) या सूर्य की आभा है ?
[१२ उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है; किन्तु तमस्काय में (जो प्रभा है, वह) कादूषणिका (अपनी आत्मा को दूषित करने वाली) है।
१३. तमुक्काए णं भंते ! केरिसए वण्णेणं पण्णत्ते ?