Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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अष्टम शतक : उद्देशक-५
३०३ गोयमा ! तस्स णं एवं भवति-णो मे हिरण्णे, नो मे सुवण्णे नो मे कंसे, नो मे दूसे, नो मे विउलधण-कणग-रयण-मणि-मोत्तिय-संख-प्पवाल-रत्तरयणमादीए संतसारसावदेजे, ममत्तभावे पुण से अपरिण्णाते भवति, से तेणढेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-'सभंडं अणुगवेसइ नो परायगं भंडं अणुगवेसइ।
[३-२ प्र.] भगवन् ! (जब वह भाण्ड उसके लिए अभाण्ड हो जाता है,) तब आप ऐसा क्यों कहते हैं कि वह श्रावक अपने भाण्ड का अन्वेषण करता है, दूसरे के भाण्ड का अन्वेषण नहीं करता?
[३-२ उ.] गौतम ! सामायिक आदि करने वाले उस श्रावक के मन में हिरण्य (चांदी) मेरा नहीं है, सुवर्ण मेरा नहीं है, कांस्य (कांसी के बर्तन आदि सामान) मेरा नहीं है, वस्त्र मेरे नहीं हैं तथा विपुल धन, कनक, रत्न, मणि, मोती, शंख, शिलाप्रवाल (मूंगा) एवं रक्तरत्न (पद्मरागादि मणि) इत्यादि विद्यमान सारभूत द्रव्य मेरा नहीं है। किन्तु (उन पर) ममत्वभाव का उसने प्रत्याख्यान नहीं किया है। इसी कारण हे गौतम ! मैं ऐसा कहता हूँ कि वह श्रावक अपने भाण्ड का अन्वेषण करता है, दूसरों के भाण्ड (सामान) का अन्वेषण नहीं करता।
४. समणोवासगस्स णं भंते ! सामाइयकडस्स समणोवस्सए अच्छमाणस्स केई जायं चरेजा, से णं भंते ! किं जायं चरइ, अजायं चरइ ?
गोयमा ! जायं चरइ, नो अजायं चरइ।
[४ प्र.] भगवन् ! सामायिक करके श्रमणोपाश्रय में बैठे हुए श्रावक की पत्नी के साथ कोई लम्पट व्यभिचार करता (भोग भोगता) है, तो क्या वह (व्यभिचारी) जाया (श्रावक की पत्नी) को भोगता है, या अजाया (श्रावक की स्त्री को नहीं, दूसरे की स्त्री) को भोगता है ?
___ [४ उ.] गौतम ! वह (व्यभिचारी पुरष) उस श्रावक की जाया (पत्नी) को भोगता है, अजाया (श्रावक के सिवाय दूसरे की स्त्री को) नहीं भोगता।
५.[१] तस्स णं भंते ! तेहिं सीलव्वय-गुण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहि सा जाया अजाया भवई ?
हंता, भवइ। __ [५-१ प्र.] भगवन् ! शीलव्रत, गुणव्रत, विरमण, प्रत्याख्यान और पौषधोपवास कर लेने से क्या उस श्रावक की वह जाया 'अजाया' हो जाती है ?
[५-१ उ.] हाँ, गौतम ! (शीलव्रतादि की साधनावेला में) श्रावक की जाया, अजाया हो जाती है। [२] से केणं खाई णं अटेण भंते ! एवं वुच्चइ० 'जायं चरइ, नो अजायं चरइ' ?
गोयमा ! तस्स णं एवं भवइ-णो मे माता, णो मे पिता, णो मे भाया, णो मे भगिणी, णो मे भजा, णो मे पुत्ता, णो मे धूता, नो मे सुण्हा, पेजबंधणे पुण से अव्वोच्छिन्ने भवइ, से तेणढेणं गोयमा ! जाव नो अजायं चरइ।