Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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दशम शतक : उद्देशक-५
अज्जो ! चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तं जहा-भुयगा भुयगवती महाकच्छा फुडा। तत्थ णं०, सेसं तं चेव।
[२५-१ प्र.] भगवन् ! अतिकायेन्द्र की कितनी अग्रमहिषियाँ हैं ? । [२५-१ उ.] आर्यो! चार अग्रमहिषियाँ हैं, यथा १. भुजगा, ३. भुजगवती, ३. महाकच्छा और ४. स्फुटा। प्रत्येक अग्रमहिषी के देवी-परिवार का वर्णन पूर्वोक्त रूप से जानना चाहिए।
[२] एवं महाकायस्स वि। [२५-२] इसी प्रकार महाकायेन्द्र के विषय में भी समझ लेना चाहिए। २६.[१] गीतरतिस्स णं भंते ! • पुच्छा।
अज्जो ! चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तं जहा—सुघोसा विमला सुस्सरा सरस्सती। तत्थ णं०, सेसं तं चेव। ___[२६-१ प्र.] भगवन् ! गीतरतीन्द्र की कितनी अग्रमहिषियाँ हैं ?
- [२६-१ उ.] आर्यो! चार अग्रमहिषियाँ हैं—१. सुघोषा, २. विमला, ३. सुस्वरा और ४. सरस्वती। प्रत्येक अग्रमहिषी के देवी-परिवार का वर्णन पूर्ववत् जानना चाहिए।
[२] एवं गीयजस्स वि। सव्वेसिं एतेसिं जहा कालस्स, नवरं सरिसनामियाओ रायहाणीओ सीहासणाणि य। सेसं तं चेव।
[२६-२] इसी प्रकार गीतयश-इन्द्र के विषय में भी जान लेना चाहिए।
इन सभी इन्द्रों का शेष सम्पूर्ण वर्णन कालेन्द्र के समान जानना चाहिए। राजधानियों और सिंहासनों का नाम इन्द्रों के नाम के समान है। शेष सभी पूर्ववत् (एक सरीखा) है।
विवेचन—व्यन्तरदेवों की विविध जाति के इन्द्रों का देवी परिवार आदि वर्णन—प्रस्तुत ८ सूत्रों (सू. १९ से २६ तक) में आठ प्रकार के व्यन्तर देवों के इन्द्रों की अग्रमहिषियों तथा उनकी देवियों की संख्या एवं अपनी अपनी सुधर्मा सभा में देवीपरिवार के साथ मैथुननिमित्तक भोग भोगने की असमर्थता का अतिदेश किया गया है।
व्यन्तरजातीय देवों के ८ प्रकार-(१) पिशाच, (२) भूत, (३) यक्ष, (४) राक्षस, (५) किन्नर, (६) किम्पुरुष, (७) महोरग एवं (८) गन्धर्व।
१. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पण) भा. २, पृ. ५०१-५०२ २. (क) भगवती. विवेचन (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त), भा. ४
(ख) तत्वार्थसूत्र अ. ४, सू. १२ : व्यन्तराः किन्नर-किम्पुरुष-महोरग-गन्धर्व-यक्ष-राक्षस-भूत-पिशाचाः।

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