Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 662
________________ दशम शतक : उद्देशक - ५ व्यन्तरजातीय देवेन्द्रों के देवी - परिवार आदि का निरूपण १९. [१] कालस्स णं भंते! पिसाविंदस्स पिसायरण्णो कति अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ ? अज्जो ! चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तं जहा— कमला कमलप्पभा उप्पला सुदंसणा । तत्थ णं एगमेगाए देवीए एगमेगं देविसहस्सं, सेसं जहा चमरलोगपालाणं । परियारो तहेव, नवरं काला रायहाणीए कालंसि सीहासणंसि, सेसं तं चैव । ६३१ [१९-१ प्र.] भगवन् ! पिशाचेन्द्र पिशाचराज काल की कितनी अग्रमहिषियाँ हैं ? [९९-१ उ.] आर्यो ! (कालेन्द्र की) चार अग्रमहिषियाँ हैं, यथा— कमला, कमलप्रभा, उत्पला और सुदर्शना। इनमें से प्रत्येक देवी (अग्रमहिषी) के एक-एक हजार देवियों का परिवार है। शेष समग्र वर्णन चमरेन्द्र के लोकपालों के समान जानना चाहिए एवं परिवार का कथन उसी के परिवार के सदृश करना चाहिए। विशेष इतना है कि इसके 'काला' नाम की राजधानी और काल नामक सिंहासन है। शेष सब वर्णन पूर्ववत् जानना चाहिए। [ २ ] एवं महाकालस्स वि । [१९-२] इसी प्रकार पिशाचेन्द्र महाकाल का एतद्विषयक वर्णन भी इसी प्रकार समझना चाहिए । २०. [ १ ] सुरूवस्स णं भंते! भूइंदस्स भूयरन्नो. पुच्छा । अज्जो ! चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तं जहा —रूववती बहुरूवा सुरूवा सुभगा । तत्थ णं एगमेगाए. सेसं जहा कालस्स । [२०-१ प्र.] भगवन् ! भूतेन्द्र भूतराज सुरूप की कितनी अग्रमहिषियाँ हैं ? [२०-१ उ.] आर्यो! (सुरूपेन्द्र भूतराज की) चार अग्रमहिषियाँ हैं, यथा-रूपवती, बहुरूपा, सुरूपा और सुभगा । प्रत्येक देवी (अग्रमहिषी) के परिवार आदि का वर्णन कालेन्द्र के समान है। [ २ ] एवं पडिरूवगस्स वि । [२०-२] इसी प्रकार प्रतिरूपेन्द्र के ( देवी - परिवार आदि के) विषय में भी जानना चाहिए। २१. [ १ ] पुण्णभद्दस्स णं भंते! जक्खिदस्स० पुच्छा । अज्जो ! चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तं जहा - पुण्णा बहुपुत्तिया उत्तमा तारया । तथ एगमेगा सेसं जहा कालस्स. । [२१-१ प्र.] भगवन् ! यक्षेन्द्र यक्षराज पूर्णभद्र की कितनी अग्रमहिषियाँ हैं ? [२१-१ उ.] आर्यो ! चार अग्रमहिषियाँ हैं, यथा— — पूर्णा, बहुपुत्रिका, उत्तमा और तारका । प्रत्येक के परिवार आदि का वर्णन कालेन्द्र के समान है। [ २ ] एवं माणिभद्दस्स वि ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669