Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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नवम शतक : उद्देशक-३३
५५९ संपट्ठिया। एवं जहा' उववाइए तहेव भाणियव्वं जाव आलोयं च करेमाणा जय जय सइंच पउंजमाणा पुरओ अहाणुपुव्वीए संपट्ठिया। तदणंतरं चंणं बहवे उग्गा भोगा जहा उववाइए जाव महापुरिसवग्गुरा परिक्खित्ता जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पुरओ य मग्गओ य पासओ य अहाणुपुव्वीए संपट्ठिया।
[७२] हजार पुरुषों द्वारा उठाई जाने योग्य उस शिविका पर जब जमालि क्षत्रियकुमार आदि सब आरूढ हो गए, तब उस शिविका के आगे-आगे सर्वप्रथम ये आठ मंगल अनुक्रम से चले, यथा-(१) स्वस्तिक, (२) श्रीवत्स, (३) नन्द्यावर्त्त, (४) वर्धमानक, (५) भद्रासन, (६) कलश, (७) मत्स्य और (८) दर्पण। इन आठ मंगलों के अनन्तर पूर्ण कलश चला, इत्यादि, औपपातिकसूत्र के कहे अनुसार यावत् गगनतलचुम्बिनी वैजयन्ती (ध्वजा) भी आगे यथानुक्रम से रवाना हुई। इस प्रकार जैसा औपपातिकसूत्र में कहा है, तदनुसार यहाँ भी कहना चाहिए, यावत् आलोक करते हुए और जय-जयकार शब्द का उच्चारण करते हुए अनुक्रम से आगे चले। इसके पश्चात् बहुत से उग्रकुल के, भोगकुल के क्षत्रिय, इत्यादि औपपातिकसूत्र में कहे अनुसार यावत् महापुरुषों के वर्ग से परिवृत होकर क्षत्रियकुमार जमालि के आगे, पीछे और आसपास चलने लगे।
१. औपपातिक सूत्र में वर्णित पाठ इस प्रकार है- "तयाणंतरंचणं वेरुलियभिसंतविमलदंडं, पलंबकोरंटमल्लदामोवसोहियं
चंदमंडलनिभं समूसियं विमलमायवत्तं पवरं सीहासणं च मणिरयणपायपीढं सपाउयाजुगसमाउत्तं बहुकिंकरकम्मगरपुरिसपायत्तपरिक्खित्तं पुरओ अहाणुपुव्वी संपट्ठियं । तयाणंतरं च णं बहवेलट्ठिग्गाहा कुंतग्गाहा चामरग्गाहा पासग्गाहा चावग्गाहा पोत्थयग्गाहा फलगग्गाहा पीढयग्गाहा वीणग्गाहा कूवयग्गाहा हडप्पगाहा पुरओ जहाणुपुव्वीए संपट्ठिया। तयाणंतरं च बहवे दंडिणो मुंडिणो सिहंडिणो-जडिणो..... पिच्छिणो ...हासकरा.... डमरकरा..... दवकरा.... चाडुकरा....कंदप्पिया कोक्कुइआ....वायंता य गायंता यहासंताय भासिंताय सासिंताय ....सावेंता य रक्खंता य.....।" एतच्च वाचनान्तरे प्रायः साक्षाद्दृश्यते एव। तथेदमपरं तत्रैवाधिकम् तयाणंतरं च णं जच्चाणं वरमल्लि हाणाणं चंचुच्चियललियपुलयविक्कमविलासियगईणं हरिमेलामउलमल्लियच्छाणं थासगअमिलाणचमरगंडपरिमंडियकडीणं अट्ठसयं वरतुरगाणं पुरओ अहाणुपुव्वीए संपट्ठियं।तयाणंतरंचणं ईसिंदंताणं ईसिंमत्ताणं ईसिंउन्नयविसालधवलदंताणं कंचणकोसीपविठ्ठदंतोवसोहियाणं अट्ठसयं गयकलहाणं पुरओ अहाणुपुव्वीए संपट्ठियं। तयाणंतरं चणं सच्छत्ताणं सज्झयाणं सघंटाणं सपडागाणं सतोरणवराणं सखिंखिणीहेमजालपेरंतपरिक्खित्ताणं सनंदिघोसाणं हेमवयचित्ततिणिसकणगनिज्जुत्तदारुगाणंसुसंविद्धचक्कमंडलधुराणं कालायससुकयनेमिजंतकम्माणं आइन्नवरतुरगसुसंपउत्ताणं कुसलनरच्छेयसारहिसुसंपग्गहियाणं सरसतबत्तीसतोणपरिमंडियाणं सकंकडवडे सगाणं सचावसरपहरणावरणभरियजुद्धसज्जाणं अट्ठसयं रहाणं पुरओ अहाणुपुवीएसंपट्ठियं । तयाणंतरं च असि-सत्तिकोंत-तोमर-मूल-लउड-भिंडिमाल-धणु-बाणसज्जं पायत्ताणीयं पुरओ अहाणुपुव्वीए संपट्ठियं। तयाणंतरं च णं बहवे राईसर-तलवर-कोडुंबिय-माडंबिय-इब्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सत्थवाहपभिइओ अप्पेगइया हयगया अप्पेगइया
गयगया अप्पेगइया रहगया पुरओ अहाणुपुव्वीए संपट्ठिया। २. औपपातिक सूत्र में यह पाठ इस प्रकार है-"राइन्ना खत्तिया इक्खागा नाया कोरव्वा।"
–औपपातिक सू. २७, पृ.५८-५९