Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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नवम शतक : उद्देशक-३३
५६१ गाजे के साथ (वाद्य के निनाद के साथ) चलने लगा। उसके आगे कलश और ताड़पत्र का पंखा लिये हुए पुरुष चल रहे थे। उसके सिर पर श्वेत छत्र धारण किया हुआ था। उसके दोनों ओर श्वेत चामर और छोटे पंखे बिजाए जा रहे थे। (इनके पीछे बहुत-से लकड़ी, भाला, पुस्तक यावत् वीणा आदि लिए हुए लोग चल रहे थे। उनके पीछे एक सौ आठ हाथी आदि, फिर लाठी, खड्ग, भाला आदि, लिये हुए पदाति (पैदल चलने वाले) पुरुष तथा उनके पीछे बहुत-से युवराज, धनाढ्य, यावत् सार्थवाह प्रभृति तथा बहुत-से लोग यावत् गातेबजाते, हंसते-खेलते चल रहे थे।) (इस प्रकार) क्षत्रियकुमार जमालि क्षत्रियकुण्डग्राम नगर के मध्य में से होकर जाता हुआ, ब्राह्मणकुण्डग्राम के बाहर जहाँ बहुशालक नामक उद्यान में श्रमण भगवान् महावीर विराजमान थे, उस ओर गमन करने लगा।
विवेचन—जमालिकुमार का सर्वऋद्धि सहित भगवान् की ओर प्रस्थान —प्रस्तुत सू. ७५ में अत्यन्त ठाठ-बाठ, राजचिह्नों एवं सभी प्रकार के जनवर्ग के साथ भगवान् महावीर की सेवा में ब्राह्मणकुण्ड की ओर विरक्त जमालिकमार के प्रस्थान का वर्णन है।
कठिन शब्दों का भावार्थ-अब्भुग्गयभिंगारे-आगे कलश सिर पर ऊंचा उठाए हुए। पग्गहियतालियंटे—ताड़पत्र के पंखे लिए हुए। ऊसवियसेतछत्ते- ऊंचा श्वेत छत्र धारण किया हुआ। पवीइत-सेत-चामर-बालवीयणीए-श्वेत चामर और छोटे पंखे दोनों ओर बिंजाते हुए। णादितरवेणंवाद्यों के शब्दों सहित। पहारेत्थ गमणाए-गमन करने लगा।
७६. तए णं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्स खत्तियकुंडग्गामं नगरं मन्झंमज्झेणं निग्गच्छमाणस्स सिंघाडग-तिग-चउक्क जाव' पहेसुबहवे अत्थत्थिया जहा उववाइए जाव अभिनंदंता य अभित्थुणंता य एवं वयासी-जय जय णंदा ! धम्मेणं, जय जय णंदा! तवेणं, जय जय णंदा! भदंते, अभग्गेहिं णाण-दसण-चरित्तमुत्तमेहिं अजियाइं जिणाहि इंदियाई,जियं च णलेहिं समणधम्मं, जियविग्यो वि य वसाहि तं देव ! सिद्धिमज्जे, णिहणाहि य राग-दोसमल्ले तवेणं धितिधणियबद्धकच्छे, महाहि अट्ठकम्मसत्तू झाणेणं उत्तमेणं सुक्केणं,अप्पमत्तो हराहि आराहणपडागं च धीर ! तिलोक्करंगमज्जे, पावय वितिमिरमणुत्तरं केवलं च णाणं, गच्छ य मोक्खं परं पदं १. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पण) भा. १, पृ. ४७२ २. भगवती. भा. ४ (पं. घेवरचन्दजी), पृ. १७४६ ३. 'जाव' पद सूचित पाठ—'चच्चर-चउम्मुह-महापह।' ४. औपपातिक सूत्र में वर्णित पाठ यावत् अभिनंदता, तक—“कामत्थिया भोगत्थिया लाभत्थिया इड्ढिसिया किट्ठिसिया
कारोडिया कारवाहिया संखिया चक्किया नंगलिया मुहमंगलिया वद्धमाणा पूसमाणवा ताहिं इट्ठाहि कंताहिं पियाहिं मणुण्णाहिं मणामाहिं ओरलाहिं कल्लाणाहिं सिवाहिं धन्नाहिं मंगल्लाहिं सस्सिरीयाहिं हिययगमणिज्जाहिं हिययपल्हायणिज्जाहिं मिय-महुर-गंभीरगाहियाहिं अट्ठसइयाहिं ताहिं अपुणरुत्ताहिं वग्गूहिं अणवरयं अभिनंदंता य।"
-औपपातिक सू. ३२, पत्र ७३