Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 657
________________ ६२६ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र चमरेन्द्र के सोमादि लोकपालों का देवी-परिवार ६. चमरस्स णं भंते ! असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो सोमस्स महारण्णो कति अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ? अज्जो ! चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तं जहा—कणगा कणगलया चित्तगुत्ता वसुंधरा। तत्थ णं एगमेगाए देवीए एगमेगं देविसहस्सं परिवारो पन्नत्तो। पभू णं ताओ एगमेगा देवी अन्नं एगमेगं देविसहस्सं परिवार विउव्वित्तए। एवामेव चत्तारि देविसहस्सा, से त्तं तुडिए। [६ प्र.] भगवन् ! असुरेन्द्र असुरकुमारराज चमर के लोकपाल सोम महाराज की कितनी अग्रमहिषियाँ . [६ उ.] आर्यो! उनके चार अग्रमहिषियाँ हैं, यथा—कनका, कनकलता, चित्रगुप्ता और वसुन्धरा । इनमें से प्रत्येक देवी का एक-एक हजार देवियों का परिवार है। इनमें से प्रत्येक देवी एक-एक हजार देवियों के परिवार की विकुर्वणा कर सकती है। इस प्रकार पूर्वापर सब मिलकर चार हजार देवियाँ होती हैं । यह एक त्रुटिक (देवी-वर्ग) कहलाता है। ७. पभू णं भंते ! चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो सोमे महाराया सोमाए रायहाणीए सभाए सुहम्माए सोमंसि सीहासणंसि तुडिएणं० ? अवसेसं जहा चमरस्स, नवरं परियारो जहा सूरियाभस्स, सेसं तं चेव जाव णो चेव णं मेहुणवत्तियं। [७ प्र.] भगवन् ! क्या असुरेन्द्र असुरकुमारराज चमर का लोकपाल सोम महाराजा, अपनी सोमा नामक राजधानी की सुधर्मासभा में, सोम नामक सिंहासन पर बैठकर अपने उस त्रुटिक (देवियों के परिवारवर्ग) के साथ भोग्य दिव्य-भोग भोगने में समर्थ है ? [७ उ.] (हे आर्यो!) जिस प्रकार असुरेन्द्र असुरकुमारराज चमर के सम्बन्ध में कहा गया, उसी प्रकार यहाँ भी जानना चाहिए, परन्तु इसका परिवार, राजप्रश्नीयसूत्र में वर्णित सूर्याभदेव के परिवार के समान जानना चाहिए।शेष सब वर्णन, पूर्ववत् जानना चाहिए, यावत् वह सोमा राजधानी की सुधर्मा सभा में मैथुननिमित्तक भोग भोगने में समर्थ नहीं है। ८. चमरस्स णं भंते ! जाव रण्णो जमस्स महारण्णो कति अग्गमहिसीओ० ? एवं चेव, नवरं जमाए रायहाणीए सेसं जहा सोमस्स। [८ प्र.] भगवन् ! चमरेनद्र के यावत् लोकपाल यम महाराजा की कितनी अग्रमहिषियाँ हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न। [८ उ.] (आर्यो!) जिस प्रकार सोम महाराजा के सम्बन्ध में कहा है, उसी प्रकार यम महाराजा के १. यहाँ राजप्रश्नीयसूत्रगत सूर्याभदेव का वर्णन जान लेना चाहिए।

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