Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [७ प्र.] भगवन् ! इन दस दिशाओं के कितने नाम कहे गए हैं ? [७ उ.] गौतम ! (इनके) दस नाम हैं, वे इस प्रकार
[गाथार्थ]-(१) ऐन्द्री (पूर्व), (२) आग्नेयी (अग्निकोण), (३) याम्या (दक्षिण), (४) नैर्ऋती (नैऋत्यकोण), (५) वारुणी (पश्चिमी), (६) (वायव्या वायव्यकोण), (७) सौम्या (उत्तर), (८) ऐशानी (ईशानकोण), (९) विमला (ऊर्ध्वदिशां) और (१०) तमा (अधोदिशा), ये दस (दिशाओं के) नाम समझने चाहिए।
विवेचन दिशाओं के ये दस नामान्तर क्यों?—प्रस्तुत ७ वें सूत्र में दिशाओं के दूसरे नामों का उल्लेख किया गया है। पूर्वदिशा (ऐन्द्री) इसीलिए कहलाती है क्योंकि उसका स्वामी (देवता) इन्द्र है। इसी प्रकार अग्नि, यम नैर्ऋति, वरुणी, वायु, सोम और ईशान देवता स्वामी होने से इन दिशाओं को क्रमशः आग्नेयी, याम्या, नैर्ऋती, वारुण, वायव्या, सौम्या और ऐशानी कहते हैं। प्रकाश-युक्त होने से ऊर्ध्वदिशा को 'विमला'
और अन्धकारयुक्त होने से अधोदिशा को 'तमा' कहते हैं।' दस दिशाओं की जीव-अजीव सम्बन्धी वक्तव्यता
८. इंदा णं भंते ! दिसा किं जीवा, जीवदेसा, जीवपदेसा, अजीवा, अजीवदेसा, अजीवपदेसा ? __गोयमा! जीवा वि, तं चेव जाव अजीवपएसा वि। जे जीवा ते नियमं एगिंदिया बेइंदिया जाव पंचिंदिया, अणिंदिया। जे जीवदेसा ते नियमं एगिंदियदेसा जाव अणिंदियदेसा। जे जीवपएसा ते नियमं एगिंदियपएसा जाव अणिंदियपएसा।जें अजीवा, ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा–रूविअजीवा य, अरूविअजीवा य। जे रूविअजीवा ते चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा–खंधा १ खंधदेसा २ खंधपएसा ३ परमाणुपोग्गला ४। __ जे अरूविअजीवा ते सत्तविहा पण्णत्ता, तं जहा–नो धम्मत्थिकाये, धम्मत्थिकायस्स देसे १ धम्मत्थिकायस्स पदेसा २, नो अधम्मत्थिकाये, अधम्मस्थिकायस्स देसे ३ अधम्मत्थिकायस्स पदेसा ४, नो आगासत्थिकाये, आगासत्थिकायस्स देसे ५ आगासत्थिकायस्स पदेसा ६ अद्धासमये ७।
__ [८ प्र.] भगवन् ! ऐन्द्री पूर्व दिशा जीवरूप है, जीव के देशरूप है, जीव के प्रदेशरूप है, अथवा अजीवरूप है, अजीव के देशरूप है या अजीव के प्रदेशरूप है ?
[८ उ.] गौतम! वह (ऐन्द्री दिशा) जीवरूप भी है, इत्यादि पूर्ववत् जानना चाहिए, यावत् वह अजीवप्रदेशरूप भी है।
उसमें जो जीव हैं, वे नियमत: एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, यावत् पंचेन्द्रिय तथा अनिन्द्रिय (केवलज्ञानी) हैं। जो १. इन्द्रो देवता यस्याः सैन्द्री। अग्निर्देवता यस्याः साऽग्नेयी...... ईशानदेवता ऐशानी विमलतया विमला। तमा रात्रिस्तदाकार
त्वात्तमाऽन्धकारेत्यर्थः। भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ४९३