Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र सकती है ? तथा पहले विमोहित करके बाद में जाती है, अथवा पहले जा कर बाद में विमोहित करती है ? (उ.) हे गौतम ! पूर्वोक्त रूप से कि पहले जाती है और पीछे भी विमोहित करती है, तक कहना चाहिए। इस प्रकार के चार दण्डक कहने चाहिए।
विवेचन–महर्द्धिक-समर्द्धिक-अल्पर्द्धिक देव-देवियों का एक दूसरे के मध्य में से गमनसामर्थ्य प्रस्तुत ७ सूत्रों (११ से १७ तक) में पूर्ववत् गमनसामर्थ्य के विषय में ७ आलापक प्रस्तुत किये गए हैं । यथा—(१) अल्पर्धिक देव का महर्द्धिक देवी के साथ, (२) समर्द्धिक देव का समर्द्धिक देवी के साथ, (सभी जातियों के देवों का स्व-स्वजातीय देवियों के साथ), (३) अल्प-ऋद्धिक देवी का महर्द्धिक देवी के साथ, (४) महर्द्धिक चतुर्निकायगत देवी अल्प-ऋद्धिक चारों जाति के देवों के साथ, (५) अल्पऋद्धिक देवी महर्द्धिक देवी के साथ, (६) सम-ऋद्धिक देवी समर्द्धिक देवी के साथ और (७) महर्द्धिक देवी का अल्प-ऋद्धिक देवी के साथ। (भवनपति से वैमानिक तक महर्द्धिक देवियों का अल्पर्द्धिक देवियों के साथ)। इन सबका निष्कर्ष यह है कि जैसे पहले अल्प-ऋद्धिक, महर्द्धिक और समर्द्धिक देवों के विषय में कहा है, वैसे ही देव-देवियों के तथा देवियों-देवियों के विषय में भी कहना चाहिए। शेष सभी पूर्ववत् समझना चाहिए। दौड़ते हुए अश्व के 'खु-खु' शब्द का कारण
१८. आसस्स णं भंते ! धावमाणस्स किं 'खु खु'त्ति करेइ ?
गोयमा! आसस्स णं धावमाणस्स हिययस्स य जगयस्स य अंतरा एत्थ णं कक्कडए नामं वाए समुटुइ, जे णं आसस्स धावमाणस्स 'खु खु' त्ति करेति।
[१८ प्र.] भगवन् ! दौड़ता हुआ घोड़ा 'खु-खु' शब्द क्यों करता है ?
[१८ उ.] गौतम ! जब घोड़ा दौड़ता है तो उसके हृदय और यकृत् के बीच में कर्कट नामक वायु उत्पन्न होती है, इससे दौड़ता हुआ घोड़ा 'खु खु' शब्द करता है।
विवेचन-घोड़े की 'खु-खु'आवाज : क्यों और कहाँ से?—प्रस्तुत सूत्र १८ में दौड़ते हुए घोड़े की 'खु-खु' आवाज का कारण हृदय और यकृत के बीच में कर्कटवायु का उत्पन्न होना बताया है।
कठिन शब्दों का भावार्थ-आसस्स अश्व के । धावमाणस्स-दौड़ते हुए। जगयस्सयकृत-(लीवर-पेट के दाहिनी ओर का अवयव विशेष , प्लीहा) के। हिययस्स-हृदय के। कक्कडएकर्कट । समुट्ठइउत्पन्न होता है।
१. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ४९९
(ख) भगवती (विवेचन) पृ. १८६, भा. ४ २. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पण) भा. २, पृ. ४९३ ३. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ४९९