Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 644
________________ दशम शतक : उद्देशक - ३ प्रज्ञापनी भाषा : मृषा नहीं १९. अह भंते ! आसइस्सामो सइस्सामो चिट्ठिस्सामो निसिइस्सामो तुयट्टिस्सामो, आणि १ आणमणी २ जायणि ३ तह पुच्छणी ४ य पण्णवणी ५ । पच्चक्खाणी भासा ६ भाषा इच्छाणुलोमा य ७ ॥१ ॥ अभिग्गहिया भासा ८ भासा य अभिग्गहम्मि बोधव्वा ९ । संसयकरणी भासा १० वोयड ११ मव्वोयडा १२ चेव ॥ २ ॥ पण्णवणी णं एसा भासा, न एसा भासा मोसा ? हंता, गोयमा ! आसइस्सामो० तं चेव जाव न एसा भासा मोसा । सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति० । ६१३ ॥ दसमे सए तइओ उद्देसो समत्तो ॥१०-३ ॥ . [११ प्र.] भगवन् ! १. आमंत्रणी, २. आज्ञापनी, ३. याचनी, ४. पृच्छनी, ५. प्रज्ञापनी, ६. प्रत्याख्यानी, ७. इच्छानुलोमा, ८. अनभिगृहीता, १०. संशयकरणी, ११. व्याकृता और १२. अव्याकृता, इन बारह प्रकार की भाषाओं में 'हम आश्रय करेंगे, शयन करेंगे, खड़े रहेंगे, बैठेंगे, और लेटेंगे' इत्यादि भाषण करना क्या प्रज्ञापनी भाषा कहलाती है और ऐसी भाषा मृषा (असत्य) नहीं कहलाती है ? [११ उ.] हाँ गौतम! यह (पूर्वोक्त) आश्रय करेंगे, इत्यादि भाषा प्रज्ञापनी भाषा है, यह भाषा मृषा (असत्य) नहीं है। हे, भगवन् ! यह इसी प्रकार है, हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ऐसा कहकर गौतमस्वामी यावत् विचरण करते हैं । विवेचन—‘आश्रय करेंगे' इत्यादि भाषा की सत्यासत्यता का निर्णय — प्रस्तुत सू. १९ में लौकिक व्यवहार की प्रवृत्ति का कारण होने से आमंत्रणी आदि १२ प्रकार की असत्यामृषा (व्यवहार) भाषाओं में से ‘आश्रय करेंगे' इत्यादि भाषा प्रज्ञापनी होने से मृषा नहीं है, ऐसा निर्णय दिया गया है। बारह प्रकार की भाषाओं का लक्षण - मूलतः चार प्रकार की भाषाएँ शास्त्र में बताई गई हैं । यथा— सत्या, मृषा (असत्या ), सत्यामृषा और असत्यामृषा (व्यवहार) भाषा । प्रज्ञापनासूत्र के ग्यारहवें भाषापद में असत्यामृषाभाषा के १२ भेद बताए हैं, जिनका नामोल्लेख मूलपाठ में है। उनके लक्षण क्रमश: इस प्रकार हैं। (१) आमंत्रणी — किसी को आमंत्रण-सम्बोधन करना । जैसे—हे भगवन् ! (२) आज्ञापनी — दूसरे को किसी कार्य में प्रेरित करने वाली । यथा— – बैठो, उठो आदि । १. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ - टिप्पण) भा. २, पृ. ४९३

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