Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
दशम शतक : उद्देशक - १
५९३
अपेक्षा भावदिशाओं की पूजा का स्वरूप बताया है। किन्तु भगवान् महावीर ने पूर्वोक्त कारणों से इन्हें जीवअजीवरूप बताया है ।
दिशाओं के दस भेद
६. कति णं भंते ! दिसाओ पण्णत्ताओ ?
गोयमा ! दस दिसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा —— पुरत्थिमा १ पुरत्थिमदाहिणा २ दाहिणा ३ दाहिणपच्चत्थिया ४ पच्चत्थिमा ५ पच्चत्थिमुत्तरा ६ उत्तरा ७ उत्तरपुरत्थिमा ८ उड्ढा ९ अहा १० ॥ [६ प्र.] भगवन्! दिशाएँ कितनी कही गई हैं ?
[६ उ.] गौतम ! दिशाएँ दस कही गई हैं। इस प्रकार हैं— (१) पूर्व, (२) पूर्व-दक्षिण (आग्नेयकोण), (३) दक्षिण, (४) दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्यकोण), (५) पश्चिम, (६) पश्चिमोत्तर (वायव्यकोण), (७) उत्तर, (८) उत्तरपूर्व (ईशानकोण), (९) ऊर्ध्वदिशा और (१०) अधोदिशा ।
विवेचन — दस दिशाओं के नाम — प्रस्तुत छठे सूत्र में दश दिशाओं के नामों का उल्लेख किया गया है । पूर्वसूत्रों में ६ दिशाएँ बताई गई थीं। इसमें चार विदिशाओं के ४ कोणों (पूर्वदक्षिण, दक्षिणपश्चिम, पश्चिमोत्तर एवं उत्तरपूर्व) को जोड़कर १० दिशाएँ बताई गई हैं।
दिशाओं का यन्त्र -
वायव्य
पश्चिम
नैऋत्य
दश दिशाओं के नामान्तर
उत्तर
उर्ध्व एवं अधः
दक्षिण
ईशान
पूर्व
आग्नेय
७. एयासि णं भंते ! दसण्हं दिसाणं कति णामधेज्जा पण्णत्ता ? गोया ! दस नामज्जा पण्णत्ता, तं जहा
इंदऽग्गेयी १-२ जम्मा य ३ नेरती ४ वारुणी ५ य वायव्वा ६ । सोमा ७ ईसाणी या ८ विमला य ९ तमा य १० बोधव्वा ॥२॥
१. (क) पृथिव्यपतेजोवाय्वाकाशकालदिगात्ममनांसि नवैव । तर्कसंग्रह, सू. २ २. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पण) भा. २, पृ. ४८५
(ख) सिंगालसुत्त जातक