Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 639
________________ ६०८ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र चार-पांच अन्य देवावासों का उल्लंघन कर सकते हैं, इसके उपारन्त वे परऋद्धि यानि स्वाभाविक शक्ति के अतिरिक्त दूसरी (वैक्रिय) शक्ति से उल्लंघन करते हैं।' ___ कठिन शब्दों का भावार्थ—आइड्ढीए–स्वकीय शक्ति से अथवा जिसमें आत्मा की अपनी ही ऋद्धि है, वह आत्मऋद्धिक होकर। परिड्ढीए- पर (दूसरी-वैक्रिय) शक्ति से। वीइक्कंते—उल्लंघन करता है। देवावासंतराइं—देवावास विशेषों को। देवों का मध्य में से होकर गमनसामर्थ्य ६. अप्पिड्डीए णं भंते ! देवे महिड्डीयस्स देवस्स मज्झंमज्झेणं वीतीवइज्जा ? णो इणठे समठे। [६ प्र.] भगवन् ! क्या अल्पऋद्धिक (अल्पशक्तियुक्त) देव, महर्द्धिक (महाशक्ति वाले) देव के बीच में हो कर जा सकता है ? [६ उ.] गौतम ! यह अर्थ (बात) समर्थ (शक्य) नहीं है। (वह, महर्द्धिक देव के बीचोंबीच हो कर नहीं जा सकता।) ७.[१] समिड्डीए णं भंते ! देवे समिड्डीयस्स देवस्स मझमझेणं वीतीवएज्जा ? णो इणठे समठे। पमत्तं पुण वीतीवएज्जा। [७-१ प्र.] भगवन् ! समर्द्धिक (समान शक्ति वाला) देव समर्द्धिक देव के बीच में से हो कर जा सकता [७-१ उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, परन्तु यदि वह (दूसरा समर्द्धिक देव) प्रमत्त (असावधान) हो तो (बीचोंबीच हो कर) जा सकता है। [२] से णं भंते ! किं विमोहित्ता पभू, अविमोहित्ता पभू ? गोयमा ! विमोहेत्ता पभू, नो अविमोहेत्ता पभू । [७-२ प्र.] भगवन् ! क्या वह देव, उस (सामने वाले समर्द्धिक देव) को विमोहित करके जा सकता है, या विमोहित किये बिना जा सकता है ? [७-२ उ.] गौतम ! वह देव, सामने वाले समर्द्धिक देव को विमोहित करके जा सकता है, विमोहित किये बिना नहीं जा सकता। [३] से भंते ! किं पुब्विं विमोहेत्ता पच्छा वीतीवएज्जा ? पुव्विं वीतीवएत्ता पच्छा विमोहेजा १. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पण) भा. २, पृ. ४९० २. भगवतीसूत्र. अ. वृत्ति, पत्र ४९९

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