Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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दशम शतक : उद्देशक-३
६०९
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गोयमा ! पुट्विं विमोहेत्ता पच्छा वीतीवएज्जा, णो पुव्वि वीतीवइत्ता पच्छा विमोहेज्जा । __ [७-३] भगवन् ! क्या वह देव, उस देव को पहले विमोहित करके बाद में जाता है, या पहले जा कर बाद में विमोहित करता है ?
[७-३] गौतम! वह देव, पहले उसे विमोहित करता है और बाद में जाता है, परन्तु पहले जा कर बाद में विमोहित नहीं करता।
८.[१] महिड्ढीए णं भंते! देवे अप्पिड्ढीयस्स देवस्स मझमझेणं वीतीवएज्जा ? हंता, वीतीवएज्जा। [८-१ प्र.] भगवन् ! क्या महर्द्धिक देव, अल्पऋद्धिक देव के बीचोंबीच में से हो कर जा सकता है ? [८-१ उ] हाँ गौतम! जा सकता है । [२] से भंते ! किं विमोहित्ता पभू, अविमोहिता पभू?
गोयमा ! विमोहित्ता वि पभू, अविमोहित्ता वि पभू ।। • [८-२ प्र.] भगवन् ! वह महर्द्धिक देव, उस अल्पऋद्धिक देव को विमोहित करके जाता है, अथवा विमोहित किये बिना जाता है ?
[८-२ उ.] गौतम ! वह विमोहित करके भी जा सकता है और विमोहित किये बिना भी जा सकता है। [३] से भंते! किं पुव्विं विमोहेत्ता पच्छा वीतीवइज्जा ? पुव्विं वीतीवइत्ता पच्छा विमोहेज्जा? गोयमा ! पुव्विं वा विमोहित्ता पच्छा वीतीवएज्जा, पुव्विं वा वीतीवइत्ता पच्छा विमोहेज्जा।
[८-३ प्र] भगवन् ! वह महर्द्धिक देव, उसे पहले विमोहित करके बाद में जाता है, अथवा पहले जा कर बाद में विमोहित करता है ?
[८-३] गौतम ! वह महर्द्धिक देव, पहले उसे विमोहित करके बाद में भी जा सकता है और पहले जा कर बाद में भी विमोहित कर सकता है।
९. [१] अप्पिड्डीए णं भंते! असुरकुमारे महिड्ढीयस्स असुरकुमारस्स मज्झमझेणं वीतीवएज्जा?
णो इणढे समठे।
[९-१] भगवन् ! अल्पऋद्धिक असुरकुमार देव, महर्द्धिक असुरकुमार देव के बीचोंबीच में से हो कर जा सकता है ?
[९-२] गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं।