Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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नवम शतक : उद्देशक-३३
५७३ विवेचन केवलज्ञानी का झूठा दावा-प्रस्तुत सू. ९८ में यह निरूपण किया गया है कि जमालि अनगार स्वस्थ एवं सशक्त होने पर श्रावस्ती से भगवान् के पास चंपा पहुंचा और उनके समक्ष अपने आपको केवलज्ञान प्राप्त होने का दावा करने लगा।
कठिन शब्दों का भावार्थ-हढे-हृष्टपुष्ट । बलियसरीरे—शरीर से बलिष्ठ। छउमत्थावक्कमणेणं अवक्कंते- छद्मस्थ-असर्वज्ञ रूप से अपक्रमण (अर्थात् गुरुकुल से निकल) कर विचरण करते हैं। केवलिअवक्कमणेणं अवक्कंते- सर्वज्ञ (केवली) रूप में अपक्रमण करके विचर रहा हूँ। गौतम के दो प्रश्नों का उत्तर देने में असमर्थ जमालि का भगवान द्वारा सैद्धान्तिक समाधान
__९९. तए णं भगवं गोयमे जमालि अणगारं एवं वयासि—णो खलु जमाली! केवलिस्स णाणे वा दंसणे वा सेलसि वा थंभंसि वा थूभंसि वा आवरिज्जइ वा णिवारिज्जइ वा। जइ णं तुमं जमाली! उप्पन्नणाण-दसणधरे अरहा जिणे केवली भवित्ता केवलिअवक्कमणेणं अवक्कंते तो णं इमाइं दो वागरणाई वागरेहि, सासए लोए जमाली! असासए लोए जमाली! ? सासए जीवे जमाली! असासए जीवे जमाली! ?
[९९] इस पर भगवान् गौतम ने जमालि अनगार से इस प्रकार कहा—हे जमालि! केवली का ज्ञान या दर्शन पर्वत (शैल), स्तम्भ अथवा स्तूप (आदि) से अवरुद्ध नहीं होता और न इनसे रोका जा सकता है। तो हे जमालि! यदि तुम उत्पन्न केवलज्ञान-दर्शन के धारक, अर्हत्, जिन और केवली हो कर केवली रूप से अपक्रमण (गुरुकुल से निर्गमन) करके विचरण कर रहे हो तो इन दो प्रश्नों का उत्तर दो—(१) जमालि! लोक शाश्वत है या अशाश्वत है ? एवं (२) जमालि! जीव शाश्वत है अथवा अशाश्वत।
१००. तए णं से जमाली अणगारे भगवया गोयमेणं एवं वुत्ते समाणे संकिए कंखिए जाव कलुससमावन्ने जाए यावि होत्था, णो संचाइए भगवओ गोयमस्स किंचि वि पमोक्खमाइक्खित्तए, तुसिणीए संचिट्ठइ।
[१००] भगवान् गौतम द्वारा इस प्रकार (दो प्रश्नों को) जमालि अनगार से कहे जाने पर वह (जमालि) शंकित एवं कांक्षित हुआ, यावत् कलुषित परिणाम वाला हुआ। वह भगवान् गौतम स्वामी को (इन दो प्रश्नों का) किञ्चित् भी उत्तर देने में समर्थ न हुआ। (फलतः) वह मौन होकर चुपचाप खड़ा रहा।
१. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पण) भा. १, पृ. ४७८ २. (क) भगवती. भा. ४ (पं, घेवरचन्दजी), पृ. १७५१ (ख) छउमत्थावक्कमणेणं ति-छद्मस्थानां सतामपक्रमणं-गुरुकुलानिर्गमनं छद्मस्थापक्रमणं तेन।
-भगवती. अ. वृत्ति पत्र ४८८