Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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नवम शतक : उद्देशक-३२
४८१ (१) अथवा दो रत्नप्रभा में और तीन शर्कराप्रभा में होते हैं, (२-६) इसी प्रकार यावत् अथवा दो रत्नप्रभा में और तीन अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं। (यों २-३ से ६ भंग होते हैं।)
(१) अथवा तीन रत्नप्रभा में और दो शर्कराप्रभा में होते हैं। २-६ इसी प्रकार यावत् अथवा दो तीन रत्नप्रभा में और दो अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं । (यों ३-२ से ६ भंग होते हैं।)
(१) अथवा चार रत्नप्रभा में और एक शर्कराप्रभा में होता है, (२-६) यावत् अथवा चार रत्नप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है। (इस प्रकार ४-१ से ६ भंग होते हैं। यों रत्नप्रभा के साथ शेष पृथ्वियों के संयोग से कुल चौबीस भंग होते हैं।)
(१) अथवा एक शर्कराप्रभा में और चार बालुकाप्रभा में होते हैं । जिस प्रकार रत्नप्रभा के साथ (१-४, २-३,३-२ और ४-१ से आगे की पृथ्वियों का संयोग किया, उसी प्रकार.शर्कराप्रभा के संयोग करने पर बीस भंग (५+५+५+५ = २०) होते हैं । यावत् अथवा चार शर्कराप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है।
इसी प्रकार बालुकाप्रभा आदि एक-एक पृथ्वी के साथ आगे की पृथ्वियों का (१-४,२-३, ३-२ और ४-१ से) योग करना चाहिए, यावत् चार तमःप्रभा में और एक अधःसप्तम-पृथ्वी में होता है। .
विवेचन–पांच नैरयिकों के द्विकसंयोगी भंग- इसके ४ विकल्प होते हैं यथा—१-४, २-३, ३-२ और ४-१ । रत्नप्रभा के द्विकसंयोगी ६ भंगों के साथ ४ विकल्पों का गुणा करने पर २४ भंग होते हैं। शर्कराप्रभा के साथ ५ भंगों से ४ विकल्पों का गुणा करने पर २०, बालुकाप्रभा के साथ १६, पंकप्रभा के साथ १२, धूमप्रभा के साथ ८ और तमःप्रभा के साथ ४ भंग होते हैं । इस प्रकार कुल २४+२०+१६+१२+८+४ = ८४ भंग द्विकसंयोगी होते हैं।
(त्रिकसंयोगी २१० भंग-) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और तीन बालुकाप्रभा में होते हैं । इसी प्रकार यावत्-अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और तीन अधःसप्तम-पृथ्वी में होते हैं। (इस प्रकार एक, एक और तीन के रत्नप्रभा-शर्कराप्रभा के साथ संयोग से पांच भंग होते हैं।)
अथवा एक रत्नप्रभा में, दो शर्कराप्रभा में और दो बालुकाप्रभा में होते हैं, इसी प्रकार यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में, दो शर्कराप्रभा में और दो अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं। (इस प्रकार एक, दो, दो के संयोग से पांच भंग होते हैं।)
__ अथवा दो रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और दो बालुकाप्रभा में होते हैं। इस प्रकार यावत् अथवा दो रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में दो अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं । (यों दो, एक, दो के संयोग से ५ भंग होते हैं।)
___ अथवा एक रत्नप्रभा में, तीन शर्कराप्रभा में, और एक बालुकाप्रभा में होता है। इसी प्रकार यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में, तीन शर्कराप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है। (इस प्रकार एक, तीन, एक के
१. भगवती. अ. वृत्ति, पत्रांक ४४४