Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र मनुष्य-प्रवेशनक और गर्भजमनुष्य-प्रवेशनक। इन दोनों की अपेक्षा एक से लेकर संख्यात तक भंग पूर्ववत् समझना चाहिए।संख्यातपद में द्विकसंयोगी भंग पूर्ववत् ११ ही होते हैं। असंख्यातपद में पहले बारह विकल्प बताए गए हैं, लेकिन यहाँ ११ ही विकल्प (भंग) होते हैं, क्योंकि यदि सम्मूछिम मनुष्यों में असंख्यातपन की तरह गर्भजमनुष्यों में भी असंख्यातपन होता, तभी बारह भंग बन सकते थे, किन्तु गर्भजमनुष्य असंख्यात नहीं होते। अतएव उनके प्रवेशनक में असंख्यातपन नहीं हो सकता। अतः असंख्यातपद के संयोग से भी ११ ही विकल्प होते हैं। उत्कृष्टरूप से मनुष्य-प्रवेशनक-प्ररूपणा
४०. उक्कोसा भंते ! मणुस्सा० पुच्छा।
गंगेया ! सव्वे वि ताव सम्मुच्छिममणुस्सेसु होज्जा। अहवा सम्मुच्छिममणुस्सेसु य गब्भवक्कंतियमणुस्सेसु वा होज्जा।
[४० प्र.] भगवन्! मनुष्य उत्कृष्टरूप से किस प्रवेशनक में होते हैं ? इत्यादि प्रश्न ।
[४० उ.] गौतम! वे सभी सम्मूछिममनुष्यों में होते हैं । अथवा सम्मूछिममनुष्यों में और गर्भज मनुष्यों में होते हैं।
विवेचन उत्कृष्ट पद में प्रवेशनक-विचार-उत्कृष्ट पद में सम्मूछिममनुष्य-प्रवेशनक कहा गया है, क्योंकि सम्मूछिममनुष्य ही असंख्यात हैं। इसलिए उनके प्रवेशनक भी असंख्यात हो सकते है। मनुष्य-प्रवेशनकों का अल्पबहुत्व
४१. एयस्स णं भंते ! सम्मुच्छिममणुस्सपवेसणगस्स गब्भवक्कंतियमणुस्सपवेसणगस्स य कयरे कयरेहितो अप्पा वा जाव विसेसाहिए वा? ___ गंगेया! सव्वत्थोवे गब्भवक्कंतियमणुस्सपवेसणए, सम्मुच्छिममणुस्सपवेसणए असंखेजगुणे।
[४१ प्र.] भगवन् ! सम्पूछिममनुष्य-प्रवेशनक और गर्भजमनुष्यप्रवेशनक, इन (दोनों में) से कौन किससे अल्प, यावत् विशेषाधिक है ?
[४१ उ.] गांगेय! सबसे थोड़ेगर्भजमनुष्य-प्रवेशनक हैं, उनसे सम्मूर्छिमनुष्य-प्रवेशनक असंख्यातगुणे हैं।
विवेचन-अल्पबहुत्व-सम्मूछिममनुष्य असंख्यात होने से गर्भजमनुष्यप्रवेशनक से उन (सम्पूछिममनुष्यों) के प्रवेशनक असंख्यातगुणे अधिक हैं।' देव-प्रवेशनक : प्रकार और भंग
४२. देवपवेसणए णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते।
१. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ४५३ २. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ४५३ ३. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ४५३