Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र कलसाणं सव्विड्डीए जाव' रवेणं महया महया निक्खमणाभिसेगेणं अभिसिंचइ, निक्खमणाभिसेगेण अभिसिचत्ता करयल जाव जएणं विजएणं वद्धावेंति, जएणं विजएणं वद्धावेत्ता एवं वयासी–भण जाया ! किं देमो ? किं पयच्छामो ? किणा वा ते अट्ठो ?
[४९] इसके पश्चात् जमालि क्षत्रियकुमार के माता-पिता ने उसे उत्तम सिंहासन पर पूर्व की ओर मुख करके बिठाया। फिर एक सौ आठ सोने के कलशों से इत्यादि जिस प्रकार राजप्रश्नीयसूत्र में कहा है, तदनुसार यावत् एक सौ आठ मिट्टी के कलशों से सर्वऋद्धि (ठाठबाठ) के साथ यावत् (वाद्यों के) महाशब्द के साथ निष्क्रमणाभिषेक किया। ___ निष्क्रमणाभिषेक पूर्ण होने के बाद (जमालिकुमार के माता-पिता ने) हाथ जोड़ कर जय-विजयशब्दों से उसे बधाया। फिर उन्होंने उससे कहा—'पुत्र! बताओ, हम तुम्हें क्या हैं ? तुम्हारे किस कार्य में क्या, (सहयोग) दें ? तुम्हारा क्या प्रयोजन है ?'
५०. तए णं से जमाली खत्तियकुमारे अम्मा-पियरो एवं वयासी-इच्छामि णं अम्म! ताओ! कुत्तियावणाओ रयहरणं च पडिग्गहं च आणिउं कासवगं च सद्दाविउं।
[५०] इस पर क्षत्रियकुमार जमालि ने माता-पिता से इस प्रकार कहा—हे माता-पिता! मैं कुत्रिकापण से रजोहरण और पात्र मंगवाना चाहता हूँ और नापित को बुलाना चाहता हूँ। .. ५१. तए णं से जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! सिरिघराओ तिण्णि सयसहस्साइं गहाय सयसहस्सेणं सयसहस्सेणं कुत्तियावणाओ रयहरणं च पडिग्गहं च आणेह, सयसहस्सेणं च कासवगं सद्दावेह।
[५१] तब क्षत्रियकुमार जमालि के पिता ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और उनसे कहा देवानुप्रियो! शीघ्र ही श्रीघर (भण्डार) से तीन लाख स्वर्णमुद्राएं (सोनैया) निकाल कर उनमें से एक-एक लाख सोनैया दे कर कुत्रिकापण से रजोहरण और पात्र ले आओ तथा (शेष) एक लाख सौनेया देकर नापित को बुलाओ।
५२. तए णं ते कोडुंबियपुरिसा जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिउणा एवं वुत्ता समाणा हट्ठतुट्ठा करयल जाव पडिसुणित्ता खिप्पामेव सिरिघराओ तिण्णि सयसहस्साइं तहेव जाव कासवगं सद्दावेंति।
[५२] क्षत्रियकुमार जमालि के पिता की उपर्युक्त आज्ञा सुन कर वे कौटुम्बिक पुरुष बहुत ही हर्षित एवं सन्तुष्ट हुए। उन्होंने हाथ जोड़ कर यावत् स्वामी के वचन स्वीकार किए और शीघ्र ही श्रीघर (भण्डार) से तीन लाख स्वर्णमुद्राएँ निकाल कर कुत्रिकापण से रजोहरण और पात्र लाए तथा नापित को बुलाया। १. 'जाव' शब्दसूचित पाठ—'सव्वजुईए ....सव्वबलेणं...सव्वसमुदएणं....सव्वरवेणं.... सव्वविभूईए....सव्वविभूसाए....
सव्वसंभमेणं....सव्वपुष्फ-गंध-मल्लालंकारेणं सव्वतुडियसद्दसन्निनाएणं महया इड्डीए महया जुईए महया बलेणं महया समुदएणं महया वरतुडिय-जमगसमगप्पवाइएणं....संख-पणव-पडह-भेरी-झल्लरि-खरमुहि-हुडुक्क-मुरय-मुइंगदंदुहिनिग्घोसनाइय।'–भगवती. अ. वृत्ति.